उ꣣त꣡ नः꣢ प्रि꣣या꣢ प्रि꣣या꣡सु꣢ स꣣प्त꣡स्व꣢सा꣣ सु꣡जु꣢ष्टा । स꣡र꣢स्वती꣣ स्तो꣡म्या꣢ भूत् ॥१४६१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)उत नः प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा । सरस्वती स्तोम्या भूत् ॥१४६१॥
उ꣣त꣢ । नः꣢ । प्रिया꣢ । प्रि꣣या꣡सु꣢ । स꣣प्त꣡स्व꣢सा । स꣣प्त꣢ । स्व꣣सा । सु꣡जु꣢꣯ष्टा । सु । जु꣣ष्टा । स꣡र꣢꣯स्वती । स्तो꣡म्या꣢꣯ । भू꣣त् ॥१४६१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में वेदवाणी का विषय है।
(उत) और (प्रियासु प्रिया) प्यारी माताओं में अत्यधिक प्रिय, (सप्तस्वसा) गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पङ्क्ति, त्रिष्टुप्, जगती रूप सात बहिनोंवाली, (सुजुष्टा) वेदज्ञ महर्षियों द्वारा भली-भाँति सेवित (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदमाता (नः)हमारी (स्तोम्या) स्तुतिपात्र अर्थात् अध्ययन-अध्यापन की पात्र (भूत्) होवे ॥१॥
वेदों का अध्ययन करके, उनसे सब विद्याएँ तथा परमात्मा की उपासना का प्रकार जानकर अभ्युदय और निःश्रेयस सिद्ध करने चाहिएँ ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ वेदवाग्विषयमाह।
(उत) अपि च (प्रियासु प्रिया) स्नेहमयीषु मातृषु प्रियतमा, (सप्तस्वसा)गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहतीपङ्क्तित्रिष्टुब्जगतीरूपसप्त-भगिनीयुता, (सुजुष्टा) वेदज्ञैर्महर्षिभिः सुसेविता (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदमाता (नः) अस्माकम् (स्तोम्या) स्तोतुमर्हा अध्येया (भूत्) भवतु ॥१॥२
वेदानधीत्य ततो निखिला विद्याः परमात्मोपासनाप्रकारं च विज्ञायाभ्युदयनिःश्रेयसे साधनीये ॥१॥