त꣡या꣢ पवस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ गा꣡व꣢ इ꣣हा꣢गम꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢स꣣ उ꣡प꣢ नो गृ꣣ह꣢म् ॥१४३६॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥१४३६॥
त꣡या꣢꣯ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । गा꣡वः꣢꣯ । इ꣣ह꣢ । आ꣣ग꣡म꣢न् । आ꣢ । ग꣡म꣢꣯न् । ज꣡न्या꣢꣯सः । उ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । गृह꣢म् ॥१४३६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।
हे तेज के धाम परमात्मन् ! आप (तया धारया) उस तेज की धारा से (पवस्व) हमें पवित्र करो, (यया) जिस धारा से (इह) यहाँ (नः गृहम्) हमारे हृदय-सदन में (जन्यासः) उत्तरोत्तर जन्म लेनेवाली (गावः) तेज की किरणें (उपागमन्) उपस्थित हो जाएँ ॥२॥
परमात्मा के पास से प्रवाहित होते हुए तेज उसके स्तोताओं को तेजस्वी बना देते हैं ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनस्तमेव विषयमाह।
हे तेजोधाम परमात्मन् ! त्वम् (तया धारया) तया तेजोधारया (पवस्व) अस्मान् पुनीहि (यया) धारया (इह) अत्र (नः गृहम्) अस्माकं हृदयसदनम् (जन्यासः) उत्तरोत्तरं जन्म गृह्णानाः। [अत्र ‘जनेर्यक्’। उ० ४।११२ इति यक् प्रत्ययः।] (गावः) तेजोरश्मयः (उपागमन्) उपागच्छन्तु ॥२॥
परमात्मनः सकाशात् प्रस्रवन्ति तेजांसि तत्स्तोतॄन् तेजस्विनः कुर्वन्ति ॥२॥