इ꣡न्द्र꣢ शु꣣द्धो꣢ न꣣ आ꣡ ग꣢हि शु꣣द्धः꣢ शु꣣द्धा꣡भि꣢रू꣣ति꣡भिः꣢ । शु꣣द्धो꣢ र꣣यिं꣡ नि धा꣢꣯रय शु꣣द्धो꣡ म꣢मद्धि सोम्य ॥१४०३॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)इन्द्र शुद्धो न आ गहि शुद्धः शुद्धाभिरूतिभिः । शुद्धो रयिं नि धारय शुद्धो ममद्धि सोम्य ॥१४०३॥
इ꣡न्द्र꣢꣯ । शु꣣द्धः꣢ । नः꣣ । आ꣢ । ग꣣हि । शुद्धः꣢ । शु꣣द्धा꣡भिः꣢ । ऊ꣣ति꣡भिः꣢ । शु꣣द्धः꣢ । र꣡यि꣢म् । नि । धा꣣रय । शुद्धः꣢ । म꣡मद्धि । सोम्य ॥१४०३॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में भी परमेश्वर, आचार्य और राजा का ही विषय है।
हे (इन्द्र) परमेश्वर, आचार्य वा राजन् ! (शुद्धः) शुद्ध आप (नः) हमारे पास (आ गहि) आओ, (शुद्धः) शुद्ध आप(शुद्धाभिः) शुद्ध (ऊतिभिः) रक्षाओं के साथ आओ। (शुद्धः) शुद्ध आप, हमें (रयिम्) आध्यात्मिक वा भौतिक ऐश्वर्य (नि धारय) प्राप्त कराओ। (शुद्धः) शुद्ध आप, हे (सोम्य) सौम्य परमेश्वर, आचार्य वा राजन् ! (अस्मान्) हमें (ममद्धि)आनन्दित करो ॥२॥
जो स्वयं ज्ञान, शरीर, मन, वचन और कर्म से शुद्ध है, वही दूसरों को शुद्ध कर सकता है ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनः परमेश्वराचार्यनृपतीनां विषयमाह।
हे (इन्द्र) परमेश्वर आचार्य नृपते वा ! (शुद्धः) पवित्रः त्वम् (नः) अस्मान् (आ गहि) आगच्छ, (शुद्धः) पवित्रः त्वम् (शुद्धाभिः) पवित्राभिः (ऊतिभिः) रक्षाभिः सह आगच्छ। (शुद्धः) पवित्रः त्वम्, अस्मासु (रयिम्) आध्यात्मिकं भौतिकं च ऐश्वर्यम् (नि धारय) निधेहि। (शुद्धः) पवित्रः त्वम्, हे (सोम्य) सौम्य परमेश्वर आचार्य नृपते वा ! अस्मान् (ममद्धि) आनन्दय ॥२॥
यः स्वयं ज्ञानेन, शरीरेण, मनसा, वाचा, कर्मणा च शुद्धः स एवान्यान् शुद्धान् कर्तुं पारयति ॥२॥