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ए꣢तो꣣ न्वि꣢न्द्र꣣ꣳ स्त꣡वा꣢म शु꣣द्ध꣢ꣳ शु꣣द्धे꣢न꣣ सा꣡म्ना꣢ । शु꣣द्धै꣢रु꣣क्थै꣡र्वा꣢वृ꣣ध्वा꣡ꣳस꣢ꣳ शु꣣द्धै꣢रा꣣शी꣡र्वा꣢न्ममत्तु ॥१४०२॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

एतो न्विन्द्रꣳ स्तवाम शुद्धꣳ शुद्धेन साम्ना । शुद्धैरुक्थैर्वावृध्वाꣳसꣳ शुद्धैराशीर्वान्ममत्तु ॥१४०२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ꣢ । इ꣣त । उ । नु꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स्त꣡वा꣢꣯म । शु꣣द्ध꣢म् । शु꣣द्धे꣡न꣢ । सा꣡म्ना꣢꣯ । शु꣣द्धैः꣢ । उ꣣क्थैः꣢ । वा꣣वृ꣢ध्वाꣳस꣢म् । शु꣣द्धैः꣢ । आ꣣शी꣡र्वा꣢न् । आ꣣ । शी꣡र्वा꣢꣯न् । म꣣मत्तु ॥१४०२॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1402 | (कौथोम) 6 » 2 » 9 » 1 | (रानायाणीय) 12 » 3 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ३५० क्रमाङ्क पर अध्यात्म विषय में की गयी थी। यहाँ परमेश्वर, आचार्य और राजा का विषय वर्णित करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे साथियो ! (एत उ) आओ, (नु) शीघ्र ही, तुम और हम मिलकर (शुद्धेन साम्ना) शुद्ध स्तोत्र से (शुद्धम्) शुद्ध (इन्द्रम्)परमात्मा, आचार्य वा राजा के (स्तवाम) गुणों का वर्णन करें। (शुद्धैः उक्थैः) शुद्ध स्तोत्रों वा वेदपाठों से (वावृध्वांसम्) वृद्धि को प्राप्त प्रत्येक स्तोता, शिष्य वा प्रजाजन को (अशीर्वान्) आशीर्वादों वा गोदुग्धों का अधिपति वह परमात्मा, आचार्य वा राजा (शुद्धैः) शुद्ध आशीर्वादों वा शुद्ध गोदुग्धों से (ममत्तु) आनन्दित करे ॥१॥

भावार्थभाषाः -

स्तुति किये गये परमेश्वर, आचार्य और राजा स्तोताओं को आशीर्वाद देकर और दूध, घी आदि ऐश्वर्य देकर बढ़ाते हैं ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ३५० क्रमाङ्केऽध्यात्मविषये व्याख्याता। अत्र परमेश्वरस्याचार्यस्य नृपतेश्च विषय उच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे सखायः ! (एत उ) आगच्छत खलु, (नु) क्षिप्रम्, यूयं वयं च संभूय (शुद्धेन साम्ना) पवित्रेण स्तोत्रेण (शुद्धम्) पवित्रम् (इन्द्रम्) परमात्मानम् आचार्यं नृपतिं वा (स्तवाम) स्तुयाम।(शुद्धैः उक्थैः) पवित्रैः स्तोत्रैः वेदपाठैर्वा (वावृध्वांसम्) वृद्धं प्रत्येकं स्तोतारं शिष्यं प्रजाजनं वा (आशीर्वान्) आशिषां गोपयसां वा अधिपतिः स परमात्मा, आचार्यः, नृपतिर्वा (शुद्धैः) शुद्धैराशीर्वादैः शुद्धैः गोपयोभिर्वा (ममत्तु) आनन्दयतु ॥१॥

भावार्थभाषाः -

स्तुताः परमेश्वर आचार्यो नृपतिश्च स्तोतॄनाशीर्वादप्रदानेन दुग्धघृताद्यैश्वर्यप्रदानेन च वर्धयन्ति ॥१॥