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प꣢रि꣣ प्र꣡ ध꣢न्वे꣡न्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

परि प्र धन्वेन्द्राय सोम स्वादुर्मित्राय पूष्णे भगाय ॥१३६७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣢रि꣣ । प्र꣡ । ध꣢न्व꣡ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । स्वादुः꣢ । मि꣣त्रा꣡य꣢ । मि꣣ । त्रा꣡य꣢꣯ । पू꣣ष्णे꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥१३६७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1367 | (कौथोम) 6 » 1 » 8 » 1 | (रानायाणीय) 11 » 2 » 5 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा की व्याख्या पूर्वार्चिक में ४२७ क्रमाङ्क पर परमात्मा के विषय में की जा चुकी है। यहाँ ब्रह्मानन्द का विषय कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (स्वादुः) मधुर स्वादवाला तू (मित्राय) मित्र, (पूष्णे) पोषणकर्ता, (भगाय) सेवनीय (इन्द्राय) जीवात्मा के लिये(परि प्र धन्व) प्रवाहित हो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर के पास से प्रवाहित हुए परमानन्दरस का पान करके जीवात्मा में एक विलक्षण शक्ति उत्पन्न हो जाती है ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४२७ क्रमाङ्के परमात्मविषये व्याख्याता। अत्र ब्रह्मानन्दविषय उच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोम) ब्रह्मानन्दरस ! (स्वादुः) मधुरः त्वम् (मित्राय) मित्रभूताय, (पूष्णे) पोषकाय, (भगाय) सेवनीयाय (इन्द्राय) जीवात्मने (परि प्र धन्व) परि प्रस्रव ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वरस्य सकाशात् प्रस्रुतं परमानन्दरसं पीत्वा जीवात्मनि काचिदपूर्वा शक्तिः समुदेति ॥१॥