य꣢द꣣द्य꣢꣫ सू꣣र उ꣢दि꣣ते꣡ऽना꣢गा मि꣣त्रो꣡ अ꣢र्य꣣मा꣢ । सु꣣वा꣡ति꣢ सवि꣣ता꣡ भगः꣢꣯ ॥१३५१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)यदद्य सूर उदितेऽनागा मित्रो अर्यमा । सुवाति सविता भगः ॥१३५१॥
य꣢त् । अ꣣द्य । अ꣢ । द्य꣣ । सू꣡रे꣢꣯ । उ꣡दि꣢꣯ते । उत् । इ꣣ते । अ꣡ना꣢꣯गाः । अन् । आ꣣गाः । मि꣣त्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । अ꣡र्यमा꣢ । सु꣣वा꣡ति꣢ । स꣣विता꣢ । भ꣡गः꣢꣯ ॥१३५१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम मन्त्र में निष्पाप होने की प्रशंसा की गयी है।
(यत्) यदि (अद्य) आज (सूरे उदिते) सूर्य के उदय होने पर, मनुष्य (अनागाः) निष्पाप होता है तो (मित्रः) सबका मित्र, (अर्यमा) न्यायकारी, न्यायानुसार कर्मफलों का दाता, (भगः) भजनीय (सविता) प्रेरक परमेश्वर उसे दिनभर (सुवाति) सत्कर्मों में प्रेरित करता रहता है ॥१॥
दिन के आरम्भ में यदि श्रेष्ठ विचार रहते हैं, तो ऐसी आशा होती है कि परमेश्वर की कृपा से सारा दिन निर्मल व्यतीत होगा ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्रादौ निष्पापत्वं प्रशंस्यते।
(यत्) यदि (अद्य) अस्मिन् दिने (सूरे उदिते) सूर्ये उदयं प्राप्ते सति, मनुष्यः (अनागाः) निष्पापो भवति, तर्हि (मित्रः) सर्वमित्रः, (अर्यमा) न्यायकारी, न्यायेन कर्मफलप्रदाता, (भगः) भजनीयः (सविता) प्रेरकः परमेश्वरः, तम् सर्वस्मिन् दिने (सुवाति) सत्कर्मसु प्रेरयति ॥१॥
दिवसस्यारम्भे यदि मनसि सद्विचाराः सन्ति तर्हि परमेशकृपया सर्वमपि दिनं निष्कलुषं व्यत्येष्यतीत्याशास्यते ॥१॥