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देवता: तनूनपात् ऋषि: मेधातिथिः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

म꣡धु꣢मन्तं तनूनपाद्य꣣ज्ञं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ नः कवे । अ꣣द्या꣡ कृ꣢णुह्यू꣣त꣡ये꣢ ॥१३४८॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञं देवेषु नः कवे । अद्या कृणुह्यूतये ॥१३४८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म꣡धु꣢꣯मन्तम् । त꣣नूनपात् । तनू । नपात् । यज्ञ꣢म् । दे꣣वे꣡षु꣢ । नः꣣ । कवे । अ꣡द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । कृ꣣णुहि । ऊत꣡ये꣢ ॥१३४८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1348 | (कौथोम) 6 » 1 » 1 » 2 | (रानायाणीय) 11 » 1 » 1 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे तनूनपात् परमेश्वर से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (तनूनपात्) देहधारियों को उठानेवाले, (कवे) दूरदर्शी प्रज्ञावाले परमात्मन् ! आप (अद्य) आज (ऊतये) रक्षा के लिए (नः) हमारे (देवेषु) विद्वानों में (यज्ञम्) त्याग-भावना को (कृणुहि) उत्पन्न करो ॥२॥

भावार्थभाषाः -

राष्ट्रवासियों का जीवन यदि यज्ञमय वा त्यागपूर्ण हो तो राष्ट्र उन्नति की सबसे ऊँची पैढ़ी पर पहुँच सकता है ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ तनूनपात् परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (तनूनपात्) देहधारिणामुन्नायक। [तनूः देहान् देहधारिणो न पातयतीति तनूनपात्।] (कवे) क्रान्तप्रज्ञ परमात्मन् ! त्वम् (अद्य) अस्मिन् दिने (ऊतये) रक्षायै (नः) अस्माकम् (देवेषु) विद्वत्सु (यज्ञम्) त्यागभावनाम् (कृणुहि) उत्पादय ॥२॥२

भावार्थभाषाः -

राष्ट्रवासिनां जीवनं यदि यज्ञमयं त्यागपूर्णं वा भवेत् तर्हि राष्ट्रमुन्नतेश्चरमसोपानमारोहेत् ॥२॥