ये꣡न꣢ दे꣣वाः꣢ प꣣वि꣡त्रे꣢णा꣣त्मा꣡नं꣢ पु꣣न꣢ते꣣ स꣡दा꣢ । ते꣡न꣢ स꣣ह꣡स्र꣢धारेण पावमा꣣नीः꣡ पु꣢नन्तु नः ॥१३०२
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)येन देवाः पवित्रेणात्मानं पुनते सदा । तेन सहस्रधारेण पावमानीः पुनन्तु नः ॥१३०२
ये꣡न꣢꣯ । दे꣣वाः꣢ । प꣣वि꣡त्रे꣢ण । आ꣣त्मा꣡न꣢म् । पु꣣न꣡ते꣢ । स꣡दा꣢꣯ । ते꣡न꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢धारेण । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रेण । पावमानीः꣣ । पु꣣नन्तु । नः ॥१३०२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में फिर वेदाध्ययन हमें क्या प्राप्त कराये, यह कहा गया है।
(देवाः) दिव्यगुणों से युक्त विद्वान् लोग (येन पवित्रेण) जिस पवित्र ब्रह्मानन्द से (आत्मानम्) अपने आत्मा को (सदा) हमेशा (पुनते) पवित्र करते हैं, (तेन सहस्रधारेण) उस हजार धाराओं से बहनेवाले दिव्य आनन्द से (पावमानीः) पवमान देवतावाली ऋचाएँ (नः) हमें (पुनन्तु) पवित्र करें ॥५॥
पावमानी ऋचाओं के गान से और उनमें वर्णित रसमय परमात्मा में ध्यान लगाने से कोई अद्वितीय दिव्य आनन्दरस का प्रवाह बहता हुआ उपासकों के चित्तों को पवित्र कर जाता है ॥५॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनर्वेदाध्ययनं नः किं प्रापयेदित्याह।
(देवाः) दिव्यगुणयुक्ता विद्वांसः (येन पवित्रेण) येन पूतेन ब्रह्मानन्देन (आत्मानम्) स्वात्मानम् (सदा) सर्वदा (पुनते) पवित्रं कुर्वन्ति (तेन सहस्रधारेण) तेन सहस्रधाराभिः प्रवहता दिव्यानन्देन (पावमानीः) पवमानदेवताका ऋचः (नः) अस्मान् (पुनन्तु) पवित्रान् कुर्वन्तु ॥५॥
पावमानीनामृचां गानेन तत्र वर्णिते रसागारे परमात्मनि ध्यानेन च कोऽपि दिव्यानन्दरसप्रवाहः प्रसरन्नुपासकानां चेतांसि पवित्रीकरोति ॥५॥