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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: राहूगण आङ्गिरसः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

स꣢ त्रि꣣त꣢꣫स्याधि꣣ सा꣡न꣢वि꣣ प꣡व꣢मानो अरोचयत् । जा꣣मि꣢भिः꣣ सू꣡र्य꣢ꣳ स꣣ह꣢ ॥१२९५॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

स त्रितस्याधि सानवि पवमानो अरोचयत् । जामिभिः सूर्यꣳ सह ॥१२९५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । त्रि꣣त꣡स्य꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । सा꣡न꣢꣯वि । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣣रोचयत् । जामि꣡भिः꣢ । सू꣡र्य꣢꣯म् । स꣣ह꣢ ॥१२९५॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1295 | (कौथोम) 5 » 2 » 7 » 4 | (रानायाणीय) 10 » 6 » 1 » 4


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में परमेश्वर का उपकार वर्णित है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(सः) उस (पवमानः) क्रियाशील और पवित्रकर्ता परमेश्वर ने (त्रितस्य) तृतीय लोक द्यौ के (सानवि अधि) शिखर पर (जामिभिः सह) बन्धुभूत नक्षत्रों के साथ (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयत्) चमकाया है ॥४॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर द्युलोक में सूर्य और तारावलि को चमकाता है और बिना ही आधार के धारण करता है, यह उसका उपकार कौन नहीं मानेगा? ॥४॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ परमेश्वरस्योपकारमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(सः) असौ (पवमानः) क्रियाशीलः पावकश्च परमेश्वरः (त्रितस्य) तृतीयस्य लोकस्य दिवः (सानवि अधि) शिखरे (जामिभिः सह) बन्धुभूतैः नक्षत्रैः सार्धम् (सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयत्) प्रकाशितवान् अस्ति ॥४॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वरो दिवि सूर्यं तारावलिं च द्योतयति निराधारं धारयति चेति तदुपकारं को न मन्येत ॥४॥