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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: प्रियमेध आङ्गिरसः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

ए꣣ष꣢ दे꣣वः꣡ शु꣢भाय꣣ते꣢ऽधि꣣ यो꣢ना꣣व꣡म꣢र्त्यः । वृ꣣त्रहा꣡ दे꣢व꣣वी꣡त꣢मः ॥१२८२॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

एष देवः शुभायतेऽधि योनावमर्त्यः । वृत्रहा देववीतमः ॥१२८२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए꣣षः꣢ । दे꣣वः꣢ । शु꣣भायते । अ꣡धि꣢꣯ । यो꣡नौ꣢꣯ । अ꣡म꣢꣯र्त्यः । अ । म꣣र्त्यः । वृत्रहा꣢ । वृ꣣त्र । हा꣢ । दे꣣ववी꣡त꣢मः । दे꣣व । वी꣡त꣢꣯मः ॥१२८२॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1282 | (कौथोम) 5 » 2 » 5 » 3 | (रानायाणीय) 10 » 4 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में जीवात्मा द्वारा परमात्मा की प्राप्ति का विषय कहा गया है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अमर्त्यः) अमरणशील, (वृत्रहा) विघ्नों का विनाशक, (देववीतमः) दिव्यगुणों को अत्यधिक प्राप्त करनेवाला (एष देवः) यह स्तोता जीव (योनौ अधि) परमात्मारूप घर में (शुभायते) शोभित होता है ॥३॥

भावार्थभाषाः -

जैसे गृहस्वामी की घर से शोभा होती है, वैसे ही जीवात्मा की परमात्मा को प्राप्त करने से शोभा होती है ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ जीवात्मनः परमात्मप्राप्तिविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(अमर्त्यः) अमरणशीलः, (वृत्रहा) विघ्नहन्ता, (देववीतमः) अतिशयेन दिव्यगुणानां प्रापकः (एष देवः) अयं स्तोता जीवः (योनौ अधि) परमात्मरूपे गृहे (शुभायते) शोभते ॥३॥

भावार्थभाषाः -

यथा गृही गृहेण शोभते तथा जीवात्मा परमात्मानं प्राप्य शोभते ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।२८।३।