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प꣡न्यं꣢पन्य꣣मि꣡त्सो꣢तार꣣ आ꣡ धा꣢वत꣣ म꣡द्या꣢य । सो꣡मं꣢ वी꣣रा꣢य꣣ शू꣡रा꣢य ॥१२३॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

पन्यंपन्यमित्सोतार आ धावत मद्याय । सोमं वीराय शूराय ॥१२३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡न्य꣢꣯म्पन्यम् । प꣡न्य꣢꣯म् । प꣣न्यम् । इ꣢त् । सो꣣तारः । आ꣢ । धा꣣वत । म꣡द्या꣢꣯य । सो꣡म꣢꣯म् । वी꣣रा꣡य꣢ । शू꣡रा꣢꣯य ॥१२३॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 123 | (कौथोम) 2 » 1 » 3 » 9 | (रानायाणीय) 2 » 1 » 9


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में यह कहा गया है कि कैसा भक्तिरस परमात्मा को अर्पित करना चाहिए।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोतारः) भक्तिरूप सोम-रस को अभिषुत करनेवाले उपासको ! तुम (मद्याय) तृप्ति प्रदान किये जाने योग्य, (वीराय) विशेष रूप से सद्गुणों के प्रेरक, (शूराय) शूर परमात्मा के लिए (पन्यं पन्यम् इत्) प्रशंसनीय-प्रशंसनीय ही (सोमम्) श्रद्धा-रस को (आ धावत) समर्पित करो ॥९॥ इस मन्त्र में ‘पन्यं, पन्यम् तथा राय, राय में छेकानुप्रास और वीराय, शूराय में पुनरुक्तवदाभास अलङ्कार है। य की अनेक बार आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है ॥९॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर प्रशंसनीय, हृदय को मोह लेनेवाले श्रद्धा-रस को प्राप्त कर स्तोता के हृदय में सद्गुणों को प्रेरित करता है और अपनी शूरता से उसके दुर्गुणों का संहार करता है ॥९॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ कीदृशः श्रद्धारसः परमात्मानं प्रत्यर्पणीय इत्याह।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (सोतारः) श्रद्धारूपस्य सोमरसस्य अभिषोतारः उपासकाः ! सुन्वन्तीति सोतारः, षुञ् अभिषवे, कर्त्तरि तृच्। (मद्याय) मादयितव्याय, तर्पणीयाय (वीराय) विशेषेण ईरयित्रे सद्गुणप्रेरकाय। वि पूर्वः ईर क्षेपे, चुरादिः, कर्त्तरि अच् प्रत्ययः. (शूराय) विक्रमशालिने इन्द्राय परमात्मने (पन्यंपन्यम् इत्) स्तुत्यं स्तुत्यम् एव। पण व्यवहारे स्तुतौ च। (सोमम्) श्रद्धारसम् (आ धावत२) आगमयत, समर्पयत। धावु गतिशुद्ध्योः, लुप्तणिच्कं रूपम् ॥९॥ अत्र पन्यं, पन्य इति राय-राय इति च छेकानुप्रासः, वीराय, शूराय इति पुनरुक्तवदाभासः, यकारस्यासकृदावृत्तौ च वृत्यनुप्रासः ॥९॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वरः प्रशस्यं हृदयावर्जकं श्रद्धारसं प्राप्य स्तोतुर्हृदये सद्गुणान् प्रेरयति, स्वशूरतया तद्दुर्गुणाँश्च संहरति ॥९॥

टिप्पणी: १. ऋ० ८।२।२५, साम० १६५७। २. आधावत आसारयत, आभिमुख्येन गमयत—इति वि०। आपुनीत, धावु गतिशुद्ध्योः—इति भ०। अभिगमयत प्रयच्छत इत्यर्थः—इति सा०।