अ꣡यु꣢क्त꣣ सू꣢र꣣ ए꣡त꣢शं꣣ प꣡व꣢मानो म꣣ना꣡वधि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण꣣ या꣡त꣢वे ॥१२१७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अयुक्त सूर एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे ॥१२१७॥
अ꣡यु꣢꣯क्त । सू꣡रः꣢꣯ । ए꣡त꣢꣯शम् । प꣡व꣢꣯मानः । म꣣नौ꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । अ꣣न्त꣡रि꣢क्षेण । या꣡त꣢꣯वे ॥१२१७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा के कर्तृत्व का वर्णन है।
(सूरः) प्रेरक (पवमानः) क्रियाशील सोम परमेश्वर ने (अन्तरिक्षेण) आकाशमार्ग से (यातवे) यात्रा करने के लिए (मनौ अधि) मनुष्य के अन्दर (एतशम्) प्राणरूप अश्व को (अयुक्त) नियुक्त किया हुआ है ॥२॥
परमात्मा के साथ योग करके और प्राणसिद्धि प्राप्त करके मनुष्य आकाशमार्ग से जाना-आना कर सकते हैं ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मनः कर्तृत्वं वर्णयति।
(सूरः) प्रेरकः। [षू प्रेरणे धातोः ‘सुसूधाञ्गृधिभ्यः क्रन्।’ उ० २।२५ इत्यनेन क्रन् प्रत्ययः।] (पवमानः) क्रियाशीलः सोमः परमेश्वरः (अन्तरिक्षेण) आकाशमार्गेण (यातवे) यातुम् (मनौ अधि) मनुष्ये (एतशम्) प्राणरूपम् अश्वम्। [एतशः इत्यश्वनाम। निघं० १।१४।] (अयुक्त) नियुक्तवानस्ति ॥२॥
परमात्मना सहयोगं प्राणसिद्धिं च प्राप्य मनुष्या आकाशमार्गेण गमनागमने कर्तुं क्षमन्ते ॥२॥२