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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: निध्रुविः काश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

अ꣣या꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या꣣ य꣢या꣣ सू꣢र्य꣣म꣡रो꣢चयः । हि꣣न्वानो꣡ मानु꣢꣯षीर꣣पः꣢ ॥१२१६॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः ॥१२१६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣣या꣢ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । य꣡या꣢꣯ । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣡रो꣢꣯चयः । हि꣣न्वानः꣢ । मा꣡नु꣢꣯षीः । अ꣣पः꣢ ॥१२१६॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1216 | (कौथोम) 5 » 1 » 8 » 1 | (रानायाणीय) 9 » 5 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४९३ क्रमाङ्क पर परमात्मा के पक्ष में व्याख्यात की गयी थी। यहाँ भी वही विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे पवमान सोम अर्थात् पवित्रतादायक जगद्रचयिता परमात्मन् ! आप (अया) इस (धारया) प्रकाश की धारा से, हमें (पवस्व) पवित्र कीजिए, (यया) जिस प्रकाश-धारा से, आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमकाया है। आप ही (मानुषीः अपः) मनुष्यों से प्राप्त करने योग्य आनन्द-रसों को (हिन्वानः) प्रेरित करो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर की कृपा से हम सूर्य के समान तेजस्वी और पवित्र होकर ब्रह्मानन्द के भागी बनें ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४९३ क्रमाङ्के परमात्मपरा व्याख्याता। अत्रापि स एव विषयः।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे पवमान सोम पवित्रतादायक जगत्स्रष्टः परमात्मन् ! त्वम् (अया) अनया (धारया) प्रकाशधारया, अस्मान् (पवस्व) पवित्रीकुरु, (यया) प्रकाशधारया त्वम् (सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयः) रोचितवानसि। त्वमेव (मानुषीः अपः) मनुष्यैः प्राप्तव्यान् आनन्दरसान् (हिन्वानः) प्रेरयन्, भवेति शेषः ॥१॥

भावार्थभाषाः -

परमेशकृपया वयं सूर्यवत् तेजस्विनः पवित्राश्च भूत्वा ब्रह्मान्दभागिनो भवेम ॥१॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।६३।७, साम० ४९३।