म꣣हो꣡ नो꣢ रा꣣य꣡ आ भ꣢꣯र꣣ प꣡व꣢मान ज꣣ही꣡ मृधः꣢꣯ । रा꣡स्वे꣢न्दो वी꣣र꣢व꣣द्य꣡शः꣢ ॥१२१४॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)महो नो राय आ भर पवमान जही मृधः । रास्वेन्दो वीरवद्यशः ॥१२१४॥
म꣡हः꣢꣯ । नः꣣ । रायः꣢ । आ । भ꣣र । प꣡व꣢꣯मान । ज꣡हि꣢ । मृ꣡धः꣢꣯ । रा꣡स्व꣢꣯ । इ꣣न्दो । वीर꣡व꣢त् । य꣡शः꣢꣯ ॥१२१४॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा तथा वीर मनुष्य से प्रार्थना की गयी है।
हे (पवमान) क्रियाशील परमात्मन् वा वीर मनुष्य ! आप (नः) हमारे लिए (महः रायः) महान् धनों को (आ भर) लाओ, (मृधः) हिंसक शत्रुओं को (जहि) विनष्ट करो। हे (इन्दो) तेज से प्रदीप्त परमात्मन् वा वीर मनुष्य ! आप (वीरवत् यशः) वीरों जैसा यश (रास्व) हमें प्रदान करो ॥२॥
संसार में परमात्मा की कृपा को प्राप्त वीर मनुष्य ही धन, धान्य और कीर्ति के सुखों को भोगने तथा भुगाने में और शत्रुओं को जीतने में समर्थ होते हैं ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मानं वीरं जनं च प्रार्थयते।
हे (पवमान) क्रियाशील परमात्मन् वीर मनुष्य वा ! [पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४।] त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (महः रायः) महान्ति धनानि (आ भर) आहर, (मृधः) हिंसकान् शत्रून् (जहि) विनाशय। हे (इन्दो) तेजसा देदीप्त परमात्मन् वीर मानव वा ! (वीरवद् यशः) वीरसदृशीं कीर्तिम् (रास्व) अस्मभ्यं प्रयच्छ। [रा दाने अदादिः, आत्मनेपदं छान्दसम्] ॥२॥
जगति परमात्मकृपावन्तो वीरा एव धनधान्यकीर्तिसुखानि भोक्तुं भोजयितुं च शत्रून् विजेतुं च क्षमन्ते ॥२॥