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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: उचथ्य आङ्गिरसः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

स꣡ प꣢वस्व मदिन्तम꣣ गो꣡भि꣢रञ्जा꣣नो꣢ अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । ए꣡न्द्र꣢स्य ज꣣ठ꣡रं꣢ विश ॥१२०९॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

स पवस्व मदिन्तम गोभिरञ्जानो अक्तुभिः । एन्द्रस्य जठरं विश ॥१२०९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः । प꣣वस्व । मदिन्तम । गो꣡भिः꣢꣯ । अ꣣ञ्जानः꣢ । अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । आ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । ज꣣ठ꣡र꣢म् । वि꣣श ॥१२०९॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1209 | (कौथोम) 5 » 1 » 5 » 5 | (रानायाणीय) 9 » 4 » 1 » 5


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में फिर परमेश्वर से प्रार्थना है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (मदिन्तम) सबसे बढ़कर आनन्ददाता जगदीश्वर ! आप (अक्तुभिः) प्रकाशक (गोभिः) अध्यात्मप्रकाश की किरणों से (अञ्जानः) प्रकाश देते हुए (आ पवस्व) आओ। (इन्द्रस्य) जीवात्मा के (जठरम्) अन्दर (आ विश) प्रविष्ट हो जाओ ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मा को प्राप्त करके जीवात्मा प्रकाशमय हो जाता है ॥५॥ इस खण्ड में स्तोत्रगान के द्वारा परमेश्वर का साक्षात्कार करने तथा परमेश्वर से प्रार्थना का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ नवम अध्याय में चतुर्थ खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनरपि परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (मदिन्तम) आनन्दयितृतम जगदीश्वर ! त्वम् (अक्तुभिः) व्यञ्जकैः (गोभिः) अध्यात्मप्रकाशरश्मिभिः (अञ्जानः) प्रकाशयन् (आ पवस्व) आगच्छ। (इन्द्रस्य) जीवात्मनः (जठरम्) अभ्यन्तरम् (आ विश) प्रविश ॥५॥

भावार्थभाषाः -

परमात्मानं प्राप्य जीवात्मा प्रकाशमयो जायते ॥५॥ अस्मिन् खण्डे स्तोत्रगानद्वारा परमेश्वरसाक्षात्कारस्य परमेश्वरप्रार्थनायाश्च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।५०।५, ‘इन्द॒विन्द्रा॑य पी॒तये॑’ इति तृतीयः पादः।