त्व꣡मि꣢न्द्र꣣ ब꣢ला꣣द꣢धि꣣ स꣡ह꣢सो जा꣣त꣡ ओज꣢꣯सः । त्वꣳ सन्वृ꣢꣯ष꣣न्वृ꣡षेद꣢꣯सि ॥१२०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः । त्वꣳ सन्वृषन्वृषेदसि ॥१२०॥
त्व꣢म् । इ꣣न्द्र । ब꣡ला꣢꣯त् । अ꣡धि꣢꣯ । स꣡ह꣢꣯सः । जा꣣तः꣢ । ओ꣡ज꣢꣯सः । त्व꣢म् । सन् । वृ꣣षन् । वृ꣡षा꣢꣯ । इत् । अ꣣सि ॥१२०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमेश्वर और राजा की महिमा का वर्णन है।
हे (इन्द्र) परमवीर परमैश्वर्यवन् परमात्मन् और राजन् ! (त्वम्) आप (बलात्) अत्याचारियों के वध और सज्जन लोगों के धारण आदि के हेतु बल के कारण, (सहसः) मनोबलरूप साहस के कारण, और (ओजसः) आत्मबल के कारण (अधिजातः) प्रख्यात हो। (सन्) श्रेष्ठ (त्वम्) आप, हे (वृषन्) सुखों के वर्षक ! (वृषा इत्) वृष्टिकर्ता मेघ ही (असि) हो ॥६॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेषालङ्कार है। इन्द्र में वर्षक मेघ का आरोप होने से रूपक है। वृष-वृषे में छेकानुप्रास है ॥६॥
परमेश्वर और राजा के राक्षसवधादिरूप और पृथिवी, सूर्य आदि लोकों के तथा राष्ट्र के धारणरूप बहुत से बल के कार्य प्रसिद्ध हैं। उनका मनोबल और आत्मबल भी अनुपम है। उनका वृषा (बादल) नाम सार्थक है, क्योंकि वे बादल के समान सबके ऊपर सुख की वर्षा करते हैं। ऐसे अत्यन्त महिमाशाली परमेश्वर और राजा का हमें दिन-रात अभिनन्दन करना चाहिए ॥६॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथेन्द्रनाम्ना परमेश्वरस्य नृपतेश्च महिमानमाचष्टे।
हे (इन्द्र) परमवीर परमैश्वर्यवन् परमात्मन् राजन् वा ! (त्वम् बलात्) अत्याचारिवधलोकधारणादिहेतोः बलस्य कारणात्, (सहसः) मनोबलात् साहसात्, (ओजसः२) आत्मबलाच्च हेतोः (अधिजातः) प्रख्यातः असि। (सन्३) श्रेष्ठः (त्वम् वृषन्) हे सुखानां वर्षक ! (वृषा इत्) वर्षकः मेघः एव (असि) वर्तसे ॥६॥ अत्रार्थश्लेषालङ्कारः। इन्द्रे मेघत्वारोपाद् रूपकम्। वृष, वृषे इत्यत्र च छेकानुप्रासः ॥६॥
परमेश्वरस्य नृपतेश्च राक्षसवधादिरूपाणि, किञ्च पृथिवीसूर्यादिलोकानां राष्ट्रस्य च धारणरूपाणि बहूनि बलकार्याणि प्रसिद्धानि। तयोः मनोबलं आत्मबलं चापि निरुपमम्। तयोर्वृषेति नाम सार्थकम्, यतो हि तौ पर्जन्यवत् सर्वेषामुपरि सुखवृष्टिं कुरुतः। एतादृशौ परममहिमान्वितौ परमेश्वरराजानावस्माभिरहर्निशमभिनन्दनीयौ ॥६॥