पु꣣नानः꣢ क꣣ल꣢शे꣣ष्वा꣡ वस्त्रा꣢꣯ण्यरु꣣षो꣡ हरिः꣢꣯ । प꣢रि꣣ ग꣡व्या꣢न्यव्यत ॥११८३॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)पुनानः कलशेष्वा वस्त्राण्यरुषो हरिः । परि गव्यान्यव्यत ॥११८३॥
पुनानः꣢ । क꣣ल꣡शे꣢षु । आ । व꣡स्त्रा꣢꣯णि । अ꣣रुषः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । ग꣡व्या꣢꣯नि । अ꣣व्यत ॥११८३॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में जीवात्मा का विषय वर्णित है।
(अरुषः) आरोचमान अर्थात् तेजस्वी (हरिः) जीवात्मा (कलशेषु) देहरूप कलशों में (आ) आकर (पुनानः) मन आदि को पवित्र करता हुआ (गव्यानि) सूर्य के समान उज्ज्वल (वस्त्राणि) गुण-कर्म-स्वभाव रूप वस्त्रों को (परि अव्यत) धारण करता है ॥६॥
तभी देहधारी का जन्म सफल होता है, जब वह व्यवहार में अत्यन्त उज्ज्वल गुण, कर्म और स्वभाव को प्रकट करता है ॥६॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ जीवात्मविषय उच्यते।
(अरुषः) आरोचमानः (हरिः) जीवात्मा [ह्रियते देहाद् देहान्तरमिति हरिः।] (कलशेषु) देहरूपेषु आ आगम्य (पुनानः) मनआदीनि पवित्राणि कुर्वन् (गव्यानि) गौः सूर्यः तद्वदुज्ज्वलानि (वस्त्राणि) गुणकर्मस्वभावरूपाणि वासांसि (परि अव्यत) पर्याच्छादयति ॥६॥
तदैव देहधारिणो जन्म सफलं यदा स व्यवहारे समुज्ज्वलान् गुणकर्मस्वभावान् प्रकटीकरोति ॥६॥