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देवता: इन्द्रः ऋषि: नृमेध आङ्गिरसः छन्द: ककुप् स्वर: ऋषभः काण्ड:

त्व꣡ꣳ हि नः꣢꣯ पि꣣ता꣡ व꣢सो꣣ त्वं꣢ मा꣣ता꣡ श꣢तक्रतो ब꣣भू꣡वि꣢थ । अ꣡था꣢ ते सु꣣म्न꣡मी꣢महे ॥११७०॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

त्वꣳ हि नः पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ । अथा ते सुम्नमीमहे ॥११७०॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम् । हि । नः꣣ । पिता꣢ । व꣣सो । त्व꣢म् । मा꣣ता꣢ । श꣣तक्रतो । शत । क्रतो । बभू꣡वि꣢थ । अ꣡थ꣢꣯ । ते꣡ । सुम्न꣢म् । ई꣢महे ॥११७०॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1170 | (कौथोम) 4 » 2 » 13 » 2 | (रानायाणीय) 8 » 6 » 2 » 2


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आचार्य से प्रार्थना करके अब परमात्मा की स्तुति तथा उससे प्रार्थना करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (वसो) निवासप्रदाता, (शतक्रतो) सैकड़ों कर्मों को करनेवाले परमेश ! (त्वं हि) आप ही (नः) हमारे (पिता) पिता और (त्वम्) आप ही (माता) माता (बभूविथ) हो। (अथ) इसलिए हम (ते) आपसे (सुम्नम्) सुख (ईमहे) माँगते हैं ॥२॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर एक ही होता हुआ सबका पिता के समान पालनकर्ता और माता के समान स्नेह देनेवाला वा चरित्र-निर्माता है। वह माता-पिता के तुल्य सबको सुख देता है ॥२॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आचार्यं प्रार्थयित्वा सम्प्रति परमात्मानं स्तौति प्रार्थयते च।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (वसो) निवासक, (शतक्रतो) शतकर्मन् परमेश ! (त्वं हि) त्वमेव खलु (नः) अस्माकम् (पिता) जनकः, (त्वम्) त्वमेव च (माता) जननी (बभूविथ) जज्ञिषे। (अथ) अतः, वयम् (ते) त्वाम् (सुम्नम्) सुखम् (ईमहे) याचामहे ॥२॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर एक एव सन् सर्वेषां पितृवत् पालको मातृवत् स्नेहप्रदाता चरित्रनिर्माता च विद्यते। स मातापितृवत् सर्वेभ्यः सुखं प्रयच्छति ॥२॥

टिप्पणी: १. ऋ० ८।९८।११, अथ० २०।१०८।२, उभयत्र ‘अधा’ इति पाठः।