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देवता: अग्निः ऋषि: वत्सः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

स꣣म꣢त्स्व꣣ग्नि꣡मव꣢꣯से वाज꣣य꣡न्तो꣢ हवामहे । वा꣡जे꣣षु चि꣣त्र꣢रा꣣धसम् ॥११६८॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

समत्स्वग्निमवसे वाजयन्तो हवामहे । वाजेषु चित्रराधसम् ॥११६८॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स꣣म꣡त्सु꣢ । स꣣ । म꣡त्सु꣢꣯ । अ꣣ग्नि꣢म् । अ꣡व꣢꣯से । वा꣣ज꣡यन्तः꣢ । ह꣣वामहे । वा꣡जे꣢꣯षु । चि꣣त्र꣡रा꣢धसम् । चि꣣त्र꣢ । रा꣣धसम् ॥११६८॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1168 | (कौथोम) 4 » 2 » 12 » 3 | (रानायाणीय) 8 » 6 » 1 » 3


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में फिर परमात्मा का आह्वान है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(समत्सु) देवासुरसंग्रामों में (वाजयन्तः) बल की कामना करते हुए, हम (अवसे) रक्षा के लिए (अग्निम्) अग्रनायक जगदीश्वर को (हवामहे) पुकारते हैं। (चित्रराधसम्) अद्भुत धनवाले उसे (वाजेषु) धनप्राप्ति के निमित्त (हवामहे) हम पुकारते हैं ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वर बल देकर ही लोगों की रक्षा करता है। अद्भुत दिव्य एवं भौतिक धनों का स्वामी वह पुरुषार्थियों को ही धन देता है ॥३॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनः परमात्मानमाह्वयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(समत्सु) देवासुरसंग्रामेषु (वाजयन्तः) बलं कामयमानाः वयम् (अवसे) रक्षणाय (अग्निम्) अग्रनायकं जगदीश्वरम् (हवामहे) आह्वयामः। (चित्रराधसम्) अद्भुतधनं तम् (वाजेषु) धनेषु निमित्तेषु (हवामहे) आह्वयामः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

परमेश्वरो बलं प्रदायैव जनान् रक्षति। अद्भुतानां दिव्यानां भौतिकानां च धनानां स्वामी स पुरुषार्थिभ्य एव धनानि ददाति ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ८।११।९।