ता꣢ नो꣣ वा꣡ज꣢वती꣣रि꣡ष꣢ आ꣣शू꣡न्पि꣢पृत꣣म꣡र्व꣢तः । ए꣡न्द्र꣢म꣣ग्निं꣢ च꣣ वो꣡ढ꣢वे ॥११५१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)ता नो वाजवतीरिष आशून्पिपृतमर्वतः । एन्द्रमग्निं च वोढवे ॥११५१॥
ता । नः꣣ । वा꣡ज꣢꣯वतीः । इ꣡षः꣢꣯ । आ꣣शू꣢न् । पि꣣पृतम् । अ꣡र्व꣢꣯तः । आ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । अ꣣ग्नि꣢म् । च꣣ । वो꣡ढ꣢꣯वे ॥११५१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर द्वारा रचित वायु और बिजली का विषय है।
हे इन्द्र-अग्नि अर्थात् वायु और बिजली ! (ता) वे तुम दोनों (वाजवतीः) बलसहित (इषः) अभीष्ट अन्न-धनादि को और (आशून्) शीघ्रगामी (अर्वतः) भूमि, जल एवं अन्तरिक्ष में चलनेवाले यानों तथा यन्त्रों को (पिपृतम्) प्रदान करो। (इन्द्रम्) वायु को (अग्निं च) और बिजली को, हम (वोढवे) पदार्थों को ढोने के लिए यान आदियों में (आ) प्रयुक्त करें ॥३॥
परमेश्वर का ही यह महत्त्व है कि उसने ऐसे वायु और बिजली रचे हैं, जिनसे बहुत से कार्य सिद्ध किये जा सकते हैं ॥३॥ इस खण्ड में परमात्मा-जीवात्मा, मोक्ष एवं परमात्मा से रचित भौतिक अग्नि, वायु तथा विद्युत् का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ अष्टम अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वररचितयोर्वायुविद्युतोर्विषयमाह।
हे इन्द्राग्नी वायुविद्युतौ ! [यो वै वायुः स इन्द्रो य इन्द्रः स वायुः। श० ४।१।३।१९।] (ता) तौ युवाम् (वाजवतीः)बलवतीः (इषः) अभीष्टाः अन्नधनादिसंहतीः, (आशून्) शीघ्रगामिनः (अर्वतः) भूजलान्तरिक्षयानयन्त्र- समूहान् च (पिपृतम्) प्रयच्छतम्। (इन्द्रम्) वायुम् (अग्निं च) विद्युतं च, वयम् (वोढवे) पदार्थान् वोढुम्, यानादिषु(आ) आनयेम, प्रयुञ्जीमहि ॥३॥२
परमेश्वरस्यैवेदं महत्त्वं यत्तेनैतादृशे वायुविद्युतौ रचिते याभ्यामनेकानि कार्याणि साद्धुं शक्यन्ते ॥३॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मजीवात्मनोर्मोक्षस्य परमात्मरचितानां भौतिकाग्निवायुविद्युतां च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥