इ꣡न्द्रा या꣢꣯हि चित्रभानो सु꣣ता꣢ इ꣣मे꣢ त्वा꣣य꣡वः꣢ । अ꣡ण्वी꣢भि꣣स्त꣡ना꣢ पू꣣ता꣡सः꣢ ॥११४६॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)इन्द्रा याहि चित्रभानो सुता इमे त्वायवः । अण्वीभिस्तना पूतासः ॥११४६॥
इ꣡न्द्र꣢꣯ । आ । या꣣हि । चित्रभानो । चित्र । भानो । सुताः꣢ । इ꣣मे꣢ । त्वा꣣य꣡वः꣢ । अ꣡ण्वी꣢꣯भिः । त꣡ना꣢꣯ । पू꣣ता꣡सः꣢ ॥११४६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमेश्वर का आह्वान किया गया है।
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यशाली परमात्मन् ! हे (चित्रभानो) अद्भुत दीप्तिवाले ! आप (आयाहि) आओ, (इमे)ये (सुताः) हमारे पुत्र (त्वायवः) आपकी कामना कर रहे हैं और (अण्वीभिः) सूक्ष्म धार्मिक वृत्तियों के कारण, (तना) धन से (पूतासः) पवित्र हैं ॥१॥
हमें और हमारी सन्तानों को परमेश्वर का उपासक और पवित्र लक्ष्मीवाला होना चाहिए। पाप से कमाया गया धन धन नहीं, किन्तु साक्षात् पाप ही होता है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथेन्द्रनाम्ना परमेश्वर आहूयते।
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! हे (चित्रभानो) अद्भुतदीप्ते ! त्वम् (आयाहि) आगच्छ, (इमे) एते (सुताः) अस्मत्पुत्राः (त्वायवः) त्वां कामयमानाः सन्ति,किञ्च (अण्वीभिः) सूक्ष्माभिः धार्मिकवृत्तिभिः (तना) धनेन [तना इति धननामसु पठितम्। निरु० २।१०।] (पूतासः) पूताः पवित्राः सन्ति। [उक्तं चान्यत्र—‘रम॑न्तां॒ पुण्या ल॒क्ष्मीर्याः पा॒पीस्ता अ॑नीनशम्।’ अथ० ७।११५।४ इति] ॥१॥२
अस्माभिरस्मत्सन्तानैश्च परमेश्वरोपासकैः पवित्रलक्ष्मीकैश्च भाव्यम्। पापेनार्जितं धनं धनं न किन्तु साक्षात् पापमेव भवति ॥१॥