हि꣣न्वाना꣢सो꣣ र꣡था꣢ इव दधन्वि꣣रे꣡ गभ꣢꣯स्त्योः । भ꣡रा꣢सः का꣣रि꣡णा꣢मिव ॥११२०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)हिन्वानासो रथा इव दधन्विरे गभस्त्योः । भरासः कारिणामिव ॥११२०॥
हिन्वाना꣡सः꣢ । र꣡थाः꣢꣯ । इ꣣व । दधन्विरे꣢ । ग꣡भ꣢꣯स्त्योः । भ꣡रा꣢꣯सः । का꣣रि꣡णा꣢म् । इ꣣व ॥११२०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में पुनः गुरुओं का ही विषय है।
(इव) जैसे (हिन्वानासः) चलते हुए (रथाः) रथ और (इव) जैसे (कारिणाम्) भारवाहक कर्मचारियों के (भरासः) भार (गभस्त्योः) बाहुओं से (दधन्विरे) धारण किये जाते हैं, वैसे ही (सोमासः) विद्वान् गुरुजन राजा द्वारा और गृहस्थ प्रजाजनों द्वारा धन आदि के दान से (दधन्विरे) धारण किये जाते हैं। यहाँ ‘सोमासः’ पद पूर्वमन्त्र से लाया गया है ॥५॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥५॥
जैसे मार्ग पर चलते हुए रथ घोड़ों की लगाम के नियन्त्रण द्वारा बाहुओं से धारण किये जाते हैं और जैसे सिर पर भार ढोते हुए श्रमिक उस भार को बाहुओं से धारण किये रखते हैं, वैसे ही विद्वान् गुरुजन राजकीय सहायता द्वारा धारण किये जाने चाहिएँ ॥५॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि गुरूणामेव विषयमाह।
(हिन्वानासः) गच्छन्तः (रथाः इव) शकटाः यथा किञ्च (कारिणाम्) भारवाहिनां कर्मकराणाम् (भरासः इव) भाराः यथा (गभस्त्योः) बाह्वोः (दधन्विरे) धीयन्ते, तथैव (सोमासः) विद्वांसो गुरवः, (नृपतिना) गृहस्थैः प्रजाजनैश्च धनादिदानेन (दधन्विरे) धीयन्ते। [अत्र ‘सोमासः’ इति पदं पूर्वमन्त्रादाकृष्यते] ॥५॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥५॥
यथा मार्गं गच्छन्तो रथाः प्रग्रहनियन्त्रेण बाहुभ्यां धीयन्ते यथा वा शिरसा भारं वहन्तः श्रमिकास्तं भारं बाहुभ्यां दधति, तथैव विद्वांसो गुरुजनाः राजसाहाय्यदानेन धारणीयाः ॥५॥