आ꣣दित्यै꣢꣫रिन्द्रः꣣ स꣡ग꣢णो म꣣रु꣡द्भि꣢र꣣स्म꣡भ्यं꣢ भेष꣣जा꣡ क꣢रत् ॥१११२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्मभ्यं भेषजा करत् ॥१११२॥
आ꣣दित्यैः꣢ । आ꣣ । दित्यैः꣢ । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । स꣡ग꣢꣯णः । स । ग꣣णः । मरु꣡द्भिः꣢ । अ꣣स्म꣡भ्य꣢म् । भे꣣षजा꣢ । क꣣रत् ॥१११२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर उसी विषय में कहा गया है।
(इन्द्रः) जीवात्मा (आदित्यैः) मन-बुद्धिसहित ज्ञानेन्द्रियों और (मरुद्भिः) प्राणों के (सगणः) गण से युक्त होकर, अथवा (इन्द्रः) राजा (आदित्यैः) सूर्यसम प्रकाशक ब्राह्मणों और (मरुद्भिः) योद्धा सैनिकों के (सगणः) गण से युक्त होकर (अस्मभ्यम्) हम मनुष्यों के लिए (भेषजा) औषध (करत्) करे ॥३॥ यहाँ श्लेषालङ्कार है ॥३॥
मनुष्य के शरीर वा राष्ट्र में जो कुछ भी कष्ट होता है,उसका शरीर में स्थित जीवात्मा, मन, बुद्धि, प्राण आदि वा राष्ट्र में स्थित राज्याधिकारी ब्राह्मण और वीर सैनिक युक्ति से प्रतीकार करें ॥३॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
(इन्द्रः) जीवात्मा (आदित्यैः) मनोबुद्धिसहितैर्ज्ञानेन्द्रियैः (मरुद्भिः) प्राणैश्च (सगणः) ससमूहः सन्, यद्वा (इन्द्रः) नृपतिः (आदित्यैः) सूर्यवत् प्रकाशकैः ब्राह्मणैः (मरुद्भिः) योद्धृभिः सैनिकैश्च (सगणः) सव्यूहः सन् (अस्मभ्यम्) मनुष्येभ्यः (भेषजा) भेषजानि (करत्) करोतु ॥३॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥३॥
मनुष्यस्य देहे राष्ट्रे वा यत्किमपि कष्टं जायते तद् देहस्था जीवात्ममनोबुद्धिप्राणादयो राष्ट्रस्य राज्याधिकारिणो ब्राह्मणा वीराः सैनिकाश्च युक्त्या प्रतिकुर्वन्तु ॥३॥