व꣡सु꣢र꣣ग्नि꣡र्वसु꣢꣯श्रवा꣣ अ꣡च्छा꣢ नक्षि द्यु꣣म꣡त्त꣢मो र꣣यिं꣡ दाः꣢ ॥११०८॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वसुरग्निर्वसुश्रवा अच्छा नक्षि द्युमत्तमो रयिं दाः ॥११०८॥
व꣡सुः꣢꣯ । अ꣣ग्निः꣢ । व꣡सु꣢꣯श्रवाः । व꣡सु꣢꣯ । श्र꣣वाः । अ꣡च्छ꣢꣯ । न꣣क्षि । द्युम꣡त्त꣢मः । र꣣यि꣢म् । दाः꣣ ॥११०८॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे पुनः उसी विषय को कहा गया है।
(अग्निः) अग्रनायक परमात्मा, राजा वा विद्वान् आचार्य (वसुः) सद्गुणों का निवासक और (वसुश्रवाः) विद्यादि धनों से कीर्तिमान् है। हे परमात्मन् राजन् वा आचार्य ! आप (अच्छ) हमारे अभिमुख (नक्षि) प्राप्त होओ। (द्युमत्तमः) अत्यधिक तेजस्वी आप (रयिम्) विविध दिव्य और भौतिक धन (दाः) दो ॥२॥
परमात्मा, राजा और आचार्य के गुण-कर्मों को देखकर उनसे लोगों को लाभ प्राप्त करना योग्य है ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनस्तमेव विषयमाह।
(अग्निः) अग्रनायकः परमात्मा राजा विद्वान् आचार्यो वा (वसुः) सुद्गुणानां वासयिता, (वसुश्रवाः) वसुभिः विद्यादिधनैः श्रवः कीर्तिर्यस्य तादृशश्च अस्ति। हे परमात्मन् राजन् आचार्य वा ! त्वम् (अच्छ) अस्मदभिमुखम् (नक्षि) प्राप्नुहि, (द्युमत्तमः) तेजस्वितमः त्वम् (रयिम्) विविधं दिव्यं भौतिकं च धनम् (दाः) देहि ॥२॥२
परमात्मनो नृपतेराचार्यस्य च गुणकर्माणि दृष्ट्वा तत्सकाशाल्लाभान् प्राप्तुमर्हन्ति जनाः ॥२॥