अ꣢ग्ने꣣ त्वं꣢ नो꣣ अ꣡न्त꣢म उ꣣त꣢ त्रा꣣ता꣢ शि꣣वो꣡ भु꣢वो वरू꣣꣬थ्यः꣢꣯ ॥११०७॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अग्ने त्वं नो अन्तम उत त्राता शिवो भुवो वरूथ्यः ॥११०७॥
अ꣡ग्ने꣢꣯ । त्वम् । नः꣣ । अ꣡न्त꣢꣯मः । उ꣣त꣢ । त्रा꣣ता꣢ । शि꣡वः꣢ । भु꣣वः । वरू꣢थ्यः ॥११०७॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम ऋचा की पूर्वार्चिक में ४४८ क्रमाङ्क पर परमात्मा और राजा के विषय में व्याख्या की जा चुकी है। यहाँ परमात्मा, राजा और आचार्य तीनों का विषय है।
हे (अग्ने) अग्रनायक परमात्मन्, राजन् वा विद्वन् आचार्य ! आप (नः) हमारे (अन्तमः) निकटतम (उत) और (त्राता) अपराधों से रक्षा करनेवा्ले, तथा (शिवः) मङ्गलकारी, (वरूथ्यः) और वरणीय (भुवः) होओ ॥१॥
परमात्मा, राजा और आचार्य का संरक्षण पाकर लोग दोषों से मुक्त, निरपराध, निश्छल, निष्पाप,विद्वान्, ब्रह्मज्ञ और सदाचारी हो जाते हैं ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४४८ क्रमाङ्के परमात्मनृपत्योर्विषये व्याख्याता। अत्र परमात्मनृपत्याचार्या उच्यन्ते।
हे (अग्ने) अग्रणीः परमात्मन् राजन् विद्वन् आचार्य वा ! त्वम् (नः) अस्माकम् (अन्तमः) अन्तिकतमः, (उत) अपि च (त्राता) अपराधेभ्यः रक्षकः, (शिवः) शिवरूपः, (वरूथ्यः) वरणीयश्च (भुवः) भव ॥१॥२
परमात्मनो नृपतेर्विदुष आचार्यस्य च संरक्षणं प्राप्यैव जना दोषमुक्ता निरपराधा निश्छला निष्पापा विद्वांसो ब्रह्मज्ञाः सदाचारिणश्च जायन्ते ॥१॥