य꣡स्य꣢ ते꣣ वि꣡श्व꣢मानु꣣ष꣡ग्भूरे꣢꣯र्द꣣त्त꣢स्य꣣ वे꣡द꣢ति । व꣡सु꣢ स्पा꣣र्हं꣡ तदा भ꣢꣯र ॥१०७१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)यस्य ते विश्वमानुषग्भूरेर्दत्तस्य वेदति । वसु स्पार्हं तदा भर ॥१०७१॥
य꣡स्य꣢꣯ । ते꣣ । वि꣡श्व꣢꣯म् । अ꣣नुष꣢क् । अ꣣नु । स꣢क् । भू꣡रेः꣢꣯ । द꣣त्त꣡स्य꣢ । वे꣡द꣢꣯ति । व꣡सु꣢꣯ । स्पा꣣र्ह꣢म् । तत् । आ । भ꣣र ॥१०७१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।
हे इन्द्र अर्थात् ऐश्वर्यशाली परमात्मन् ! (यस्य ते) जिस तेरे (भूरेः) बहुत अधिक (दत्तस्य) दिये हुए धन के विषय में (विश्वम्) सारा संसार (आनुषक्) निरन्तर (वेदति) जानता है, (तत्) उस (स्पार्हम्) चाहने योग्य (वसु) आध्यात्मिक तथा भौतिक धन को (आ भर) हमें भी प्रदान कर ॥३॥
ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी धन बिखरा पड़ा है, वह सब परमात्मा का दिया हुआ ही है। हम भी अपने पुरुषार्थ से उस धन के भागी बनें ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमात्मा प्रार्थ्यते।
हे इन्द्र ऐश्वर्यशालिन् परमात्मन् ! (यस्य ते) यस्य तव (भूरेः) प्रचुरस्य (दत्तस्य) वितीर्णस्य धनस्य (विश्वम्) सकलं जगत् (आनुषक्) नैरन्तर्येण (वेदति) वेत्ति, [विद ज्ञाने, लेटि अडागमः।], (तत् स्पार्हम्) स्पृहणीयम् (वसु) आध्यात्मिकं भौतिकं च धनम् (आ भर) अस्मभ्यमपि प्रयच्छ ॥२॥
ब्रह्माण्डे यत्किञ्चिदपि धनं विकीर्णमस्ति तत् सर्वं परमात्मप्रदत्तमेव। वयमपि स्वपुरुषार्थेन तस्य धनस्य भागिनो भवेम ॥२॥