ए꣣ते꣡ सोमा꣢꣯ असृक्षत गृणा꣣नाः꣡ शव꣢꣯से म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य꣣ धा꣡र꣢या ॥१०६१॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)एते सोमा असृक्षत गृणानाः शवसे महे । मदिन्तमस्य धारया ॥१०६१॥
ए꣣ते꣢ । सो꣡माः꣢꣯ । अ꣢सृक्षत । गृणानाः꣢ । श꣡व꣢꣯से । म꣣हे꣢ । म꣣दि꣡न्त꣢मस्य । धा꣡र꣢꣯या ॥१०६१॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
प्रथम मन्त्र में गुरुओं का वर्णन है।
(एते) ये (गृणानाः) शास्त्रों का उपदेश करते हुए (सोमाः) विद्यारस के भण्डार गुरुजन ! (महे शवसे) महान् बल के लिए (मदिन्तमस्य) अत्यधिक आनन्ददायक ज्ञान की (धारया) धारा के साथ (असृक्षत) विद्यादान कर रहे हैं ॥१॥
योग्य गुरुओं से ग्रहण की गयी विद्या शिष्यों की कीर्त्ति करनेवाली होती है ॥१॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
तत्रादौ गुरवो वर्ण्यन्ते।
(एते) इमे (गृणानाः) शास्त्राण्युपदिशन्तः (सोमाः) विद्यारसागाराः गुरवः (महे शवसे) महते बलाय (मदिन्तमस्य) आनन्दयितृतमस्य ज्ञानस्य (धारया) प्रवाहसन्तत्या (असृक्षत) विद्यादानं कुर्वन्ति ॥१॥
योग्येभ्यो गुरुभ्यो गृहीता विद्या शिष्याणां कीर्तिकरी जायते ॥१॥