तं꣢ त्वा꣣ म꣡दा꣢य꣣ घृ꣡ष्व꣢य उ लोककृ꣣त्नु꣡मी꣢महे । त꣢व꣣ प्र꣡श꣢स्तये म꣣हे꣢ ॥१०४४॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)तं त्वा मदाय घृष्वय उ लोककृत्नुमीमहे । तव प्रशस्तये महे ॥१०४४॥
तम् । त्वा꣣ । म꣡दा꣢꣯य । घृ꣡ष्व꣢꣯ये । उ꣣ । लोककृत्नु꣢म् । लो꣣क । कृत्नु꣢म् । ई꣣महे । त꣡व꣢꣯ । प्र꣡श꣢꣯स्तये । प्र । श꣣स्तये । म꣢हे ॥१०४४॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अब उपासक परमात्मा को कह रहा है।
हे पवमान सोम अर्थात् पवित्रकर्ता रसागार परमात्मन् ! (तम् उ) उस (लोककृत्नुम्) लोकों के रचयिता (त्वा) तुझे हम (घृष्वये) बुराईयों से संघर्ष करने में समर्थ (मदाय) उत्साह के लिए (ईमहे) प्राप्त करते हैं। हम (महे) महती (प्रशस्तये) प्रशस्ति पाने के लिए (तव) तेरे हो जाएँ ॥८॥
परमात्मा के साथ मित्रता संस्थापित करके ही मनुष्य जीवन में सफलता, विजय और यश पा सकता है ॥८॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथोपासकः परमात्मानमाह।
हे पवमान सोम पवित्रकर्तः रसागार परमात्मन् ! (तम् उ) तं खलु (लोककृत्नुम्) लोकानां रचयितारम् (त्वा) त्वाम्, वयम् (घृष्वये) संघर्षक्षमाय (मदाय) उत्साहाय (ईमहे) प्राप्नुमः। वयम् (महे) महत्यै (प्रशस्तये) प्रशंसायै कीर्तये वा (तव) त्वत्सखायः, स्यामेति शेषः ॥८॥
परमात्मना सह सख्यं संस्थाप्यैव मानवो जीवने साफल्यं विजयं यशश्च प्राप्तुं शक्नोति ॥८॥