अ꣡चि꣢क्रद꣣द्वृ꣢षा꣣ ह꣡रि꣢र्म꣣हा꣢न्मि꣣त्रो꣡ न द꣢꣯र्श꣣तः꣢ । स꣡ꣳ सूर्ये꣢꣯ण दिद्युते ॥१०४२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)अचिक्रदद्वृषा हरिर्महान्मित्रो न दर्शतः । सꣳ सूर्येण दिद्युते ॥१०४२॥
अ꣡चि꣢꣯क्रदत् । वृ꣡षा꣢꣯ । ह꣡रिः꣢꣯ । म꣣हा꣢न् । मि꣣त्रः꣢ । मि꣣ । त्रः꣢ । न । द꣣र्शतः꣢ । सम् । सू꣡र्ये꣢꣯ण । दि꣣द्युते ॥१०४२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
छठी ऋचा ४९७ क्रमाङ्क पर परमेश्वर के विषय में व्याख्यात की गयी थी। यहाँ बादल के वर्णन द्वारा परमात्मा की महिमा प्रकट की गयी है।
परमेश्वर की ही यह महिमा है कि (हरिः) वायु से इधर-उधर ले जाया जाता हुआ, (वृषा) वर्षा करनेवाला बादल (अचिक्रदत्) स्वयं को गरजाता है। (महान्) विशाल वह बादल (मित्रः न) मित्र के समान (दर्शतः) दर्शनीय होता है और वह बादल (सूर्येण) सूर्य द्वारा (सं दिद्युते) भलीभाँति दीप्त होता है, बिजली की छटाओं से भासित होता है ॥६॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥६॥
बादल जब गरजता है, बिजली चमकाता है और बरसता है तब गरमी की धूप से तप्त लोग उसका मित्र के समान स्वागत करते हैं। बादल के जो उपकार हैं, वे वास्तव में परेश्वर के ही उपकार समझने चाहिएँ, क्योंकि वह उसी से सञ्चालित होता है ॥६॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
षष्ठी ऋक् पूर्वार्चिके ४९७ क्रमाङ्के परमेश्वरविषये व्याख्याता। अत्र पर्जन्यवर्णनमुखेन परमात्ममहिमानं प्रकटयति।
परमेश्वरस्यैवायं महिमा यत् (हरिः) वायुना इतस्ततो ह्रियमाणः (वृषाः) वर्षकः पर्जन्यः (मित्रः न) सुहृदिव (दर्शतः) दर्शनीयो भवति। किञ्च स पर्जन्यः (सूर्येण) आदित्यद्वारा (सं दिद्युते) सम्यक् दीप्यते, विद्युच्छटाभिर्भासते ॥६॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥६॥
पर्जन्यो यदा गर्जति विद्युतं विद्योतयति वर्षति च तदा ग्रीष्मतापेन तप्ता जनास्तस्य मित्रवत् स्वागतं कुर्वन्ति। पर्जन्यस्य य उपकारास्सन्ति ते वस्तुतः परमेश्वरस्यैवोपकारा मन्तव्यास्तेनैव तस्य सञ्चालितत्वात् ॥६॥