त्व꣡मि꣢न्द्राभि꣣भू꣡र꣢सि꣣ त्व꣡ꣳ सूर्य꣢꣯मरोचयः । वि꣣श्व꣡क꣢र्मा वि꣣श्व꣡दे꣢वो म꣣हा꣡ꣳ अ꣢सि ॥१०२६॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)त्वमिन्द्राभिभूरसि त्वꣳ सूर्यमरोचयः । विश्वकर्मा विश्वदेवो महाꣳ असि ॥१०२६॥
त्वम् । इ꣣न्द्र । अभिभूः꣢ । अ꣣भि । भूः꣢ । अ꣣सि । त्व꣢म् । सू꣡र्य꣢꣯म् । अ꣣रोचयः । विश्व꣡क꣢र्मा । वि꣣श्व꣢ । क꣣र्मा । विश्व꣡दे꣢वः । वि꣣श्व꣢ । दे꣣वः । महा꣢न् । अ꣣सि ॥१०२६॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में परमेश्वर के गुण-कर्मों का वर्णन है।
हे (इन्द्र) जगदीश्वर ! (त्वम्) आप (अभिभूः) सब काम, क्रोध आदि शत्रुओं को परास्त करनेवाले (असि) हो, (त्वम्) आपने (सूर्यम्) सूर्य को (अरोचयः) चमकाया है। आप (विश्वकर्मा) सब कर्मों को करनेवाले, (विश्वदेवः) सबको आनन्द देनेवाले तथा (महान्) महान् (असि) हो ॥२॥
जो संसार की उत्पत्ति, स्थिति, प्रकाशप्रदान आदि कर्मों से तथा आनन्द देने के द्वारा हमारा उपकार करता है, उस अनन्त महिमावाले परमेश्वर के स्तुतिगीत सबको गाने चाहिएँ ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ परमेश्वरस्य गुणकर्माणि वर्ण्यन्ते।
हे (इन्द्र) जगदीश्वर ! (त्वम्) अभिभूः सर्वेषां विघ्नानां कामक्रोधादिशत्रूणां वा अभिभविता (असि) वर्तसे। (त्वम् सूर्यम्) आदित्यम् (अरोचयः) दीपितवानसि। त्वम् (विश्वकर्मा) सर्वकर्मा, (विश्वदेवः) सर्वमोदकः।[विश्वान् सर्वान् सज्जनान् देवयति मोदयते यः सः। दिवुः मोदार्थः।] (महान्) महामहिमश्च (असि) वर्तसे ॥२॥
यो जगदुत्पत्तिस्थितिप्रकाशनादिकर्मभिरानन्दप्रदानेन चास्मानुपकरोति तस्याऽनन्तमहिम्नः परमेश्वरस्य स्तुतिगीतानि सर्वैर्गातव्यानि ॥२॥