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ए॒वा दे॑व दे॒वता॑ते पवस्व म॒हे सो॑म॒ प्सर॑से देव॒पान॑: । म॒हश्चि॒द्धि ष्मसि॑ हि॒ताः स॑म॒र्ये कृ॒धि सु॑ष्ठा॒ने रोद॑सी पुना॒नः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā deva devatāte pavasva mahe soma psarase devapānaḥ | mahaś cid dhi ṣmasi hitāḥ samarye kṛdhi suṣṭhāne rodasī punānaḥ ||

पद पाठ

ए॒व । दे॒व॒ । दे॒वऽता॑ते । प॒व॒स्व॒ । म॒हे । सो॒म॒ । प्सर॑से । दे॒व॒ऽपानः॑ । म॒हः । चि॒त् । हि । स्मसि॑ । हि॒ताः । स॒म्ऽअ॒र्ये । कृ॒धि । सु॒ऽस्था॒ने । रोद॑सी॒ इति॑ । पु॒ना॒नः ॥ ९.९७.२७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:97» मन्त्र:27 | अष्टक:7» अध्याय:4» वर्ग:16» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:6» मन्त्र:27


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देव) हे दिव्यस्वरूप परमात्मन् ! आप (देवपानः) विद्वानों से प्रारम्भ किये हुए यज्ञ में (महे) जो सबसे बड़ा है, उसमें (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (प्सरसे) विद्वानों की तृप्ति के लिये (पवस्व) पवित्र करें और (रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक के मध्य में (सुष्ठाने) शोभन स्थान में (पुनानः) हमको पवित्र करते हुए आप (समर्ये) इस संसार के युद्धरूपी क्षेत्र में (हिताः) हितकर (कृधि) बनाएँ, (हि) क्योंकि आप (महश्चित्) बड़ी से बड़ी शक्तियों को (स्मसि) अनायास से (एव) ही धारण कर रह हो ॥२७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा सब लोक-लोकान्तरों को अनायास से धारण कर रहा है। उसी सर्वाधार परमात्मा की सुरक्षा से पुरुष सुरक्षित रहता है, अतएव शुभ कर्म्म करते हुए एकमात्र उसी से सुरक्षा की प्रार्थना करनी चाहिये ॥२७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देव) हे दिव्यस्वरूपपरमात्मन् ! (देवपानः) विदुषां तृप्तिकर्ता भवान् (देवताते) विद्वद्भिः प्रस्तुते यज्ञे (महे) महति (सोम) हे सौम्यस्वभाव ! (प्सरसे) विद्वत्तृप्तये (पवस्व) पवित्रतां समुत्पादयतु (रोदसी) द्युलोके पृथिवीलोकमध्ये (सुष्ठाने) शोभनस्थाने (पुनानः) मां पावयन् (समर्ये) संसारस्य युद्धस्थलरूपक्षेत्रे (हिताः, कृधि) हितकरे सम्पादयतु मां (हि) यतः (महश्चित्) भवान् तीक्ष्णतमशक्तीः (स्मसि, एव) दधाति हि ॥२७॥