पव॑मानस्य॒ जङ्घ्न॑तो॒ हरे॑श्च॒न्द्रा अ॑सृक्षत । जी॒रा अ॑जि॒रशो॑चिषः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
pavamānasya jaṅghnato hareś candrā asṛkṣata | jīrā ajiraśociṣaḥ ||
पद पाठ
पव॑मानस्य । जङ्घ्न॑तः । हरेः॑ । च॒न्द्राः । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । जी॒राः । अ॒जि॒रऽशो॑चिषः ॥ ९.६६.२५
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:66» मन्त्र:25
| अष्टक:7» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:5
| मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:25
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - उस समय (पवमानस्य) पवित्र करनेवाले (जङ्घ्नतः) अज्ञानों के नाश करनेवाले तथा (हरेः) पापों के हरण करनेवाले (अजिरशोचिषः) सर्वगत तेजवाले परमात्मा की (चन्द्राः) आह्लादक (जीराः) ज्योतियाँ (असृक्षत) उत्पन्न होती हैं ॥२५॥
भावार्थभाषाः - जब योगी जन उस परमात्मा को लक्ष्य बनाकर उसका ध्यान करते हैं, तब अपूर्व ज्योति उत्पन्न होती है। वा यों कहो कि अजर अमर भाव देनेवाला ब्रह्मज्ञान उस समय मनुष्य की बुद्धि को प्रकाशित करता है। इसी का नाम ब्राह्मी प्रज्ञा है। इसी अभिप्राय से गीता में कृष्ण जी ने कहा है कि “एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति” हे अर्जुन ! यह ब्राह्मी स्तिथि है, इसको पाकर फिर पुरुष मोह को प्राप्त नहीं होता ॥२५॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - तस्मिन्नज्ञाने नष्टे सति (पवमानस्य) पवित्रयितुः (जङ्घ्नतः) अज्ञानननाशकस्य (हरेः) पापहर्तुः (अजिरशोचिषः) सर्वगततेजस्विनः परमदयावत ईश्वरस्य (चन्द्राः) आह्लादकानि (जीराः) ज्योतींषि (असृक्षत) उत्पद्यन्ते ॥२५॥