वांछित मन्त्र चुनें
देवता: पवमानः सोमः ऋषि: कश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

पव॑मानस्य विश्ववि॒त्प्र ते॒ सर्गा॑ असृक्षत । सूर्य॑स्येव॒ न र॒श्मय॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pavamānasya viśvavit pra te sargā asṛkṣata | sūryasyeva na raśmayaḥ ||

पद पाठ

पव॑मानस्य । वि॒श्व॒ऽवि॒त् । प्र । ते॒ । सर्गाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । सूर्य॑स्यऽइव । न । र॒श्मयः॑ ॥ ९.६४.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:37» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववित्) हे सम्पूर्ण संसार के जाननेवाले परमात्मन् ! (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (ते) तुम्हारी (सर्गाः) सृष्टियें (प्रासृक्षत) जो रची गई हैं, वे (सूर्यस्येव) सूर्य की (रश्मयः) किरणों के समान (न) इस काल में शोभा को प्राप्त हो रही हैं ॥७॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा के कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड सूर्य की रश्मियों के समान देदीप्यमान हो रहे हैं। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार सूर्य अपनी ज्योति से अनन्त ब्रह्माण्डों को प्रकाशित करता है, उस प्रकार अन्य भी तेजोमय ब्रह्माण्ड लोक-लोकान्तरों को प्रकाश करनेवाले परमात्मा की रचना में अनन्त हैं। इसी अभिप्राय से वेद में अन्यत्र भी कहा है कि “को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्” इत्यादि मन्त्रों में यह वर्णन किया है कि परमात्मा की रचनाओं के अन्त को कौन जान सकता है और कौन इसको पूर्णरूप से कथन कर सकता है ॥७॥
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (विश्ववित्) हे संसारज्ञ परमात्मन् ! (पवमानस्य) सर्वपवित्रयितः (ते) तव (सर्गाः) सृष्टयः याः (प्र असृक्षत) रचिताः सन्ति ताः (सूर्यस्येव रश्मयः) रवेः किरणा इव (न) सम्प्रति शोभन्ते ॥७॥