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देवता: पवमानः सोमः ऋषि: कश्यपः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

वृषा॑ सोम द्यु॒माँ अ॑सि॒ वृषा॑ देव॒ वृष॑व्रतः । वृषा॒ धर्मा॑णि दधिषे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣā soma dyumām̐ asi vṛṣā deva vṛṣavrataḥ | vṛṣā dharmāṇi dadhiṣe ||

पद पाठ

वृषा॑ । सो॒म॒ । द्यु॒ऽमान् । अ॒सि॒ । वृषा॑ । दे॒व॒ । वृष॑ऽव्रतः । वृषा॑ । धर्मा॑णि । द॒धि॒षे॒ ॥ ९.६४.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:64» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:36» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (द्युमान्) आप दीप्तिमान् (असि) हैं (वृषा) तथा सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले हैं। (देव) हे देव ! आप (वृषव्रतः) अर्थात् आनन्द की वृष्टिरूप शील को धारण किये हुए हैं तथा उपासकों के हृदयों को (वृषा) स्नेह से सिञ्चन करते हैं (वृषा धर्माणि दधिषे) और वर्षणशील धर्मों को धारण किये हुए हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे परमात्मन् ! आप नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-स्वभाव हैं और आपकी मर्यादा में ही सब लोक-लोकान्तर स्थिर हैं। आप अपनी धर्ममर्यादा में हमको भी स्थिर कीजिये ॥१॥
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आर्यमुनि

अथ परमात्मनो गुणा वर्ण्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! त्वं (द्युमानसि) दीप्तिमानसि। तथा (वृषा) समस्ताभीष्टवर्षकोऽसि। तथोपासकानां हृदयानि (वृषा) स्नेहेन सिञ्चसि। (देव) हे दिव्यगुणसम्पन्न ! भवान् (वृषव्रतः) आनन्दवर्षणशीलं ददाति। (वृषा धर्माणि दधिषे) तथा वर्षणशीलधर्मधारकोऽस्ति ॥१॥