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अ॒या प॑वस्व॒ धार॑या॒ यया॒ सूर्य॒मरो॑चयः । हि॒न्वा॒नो मानु॑षीर॒पः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ayā pavasva dhārayā yayā sūryam arocayaḥ | hinvāno mānuṣīr apaḥ ||

पद पाठ

अ॒या । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । यया॑ । सूर्य॑म् । अरो॑चयः । हि॒न्वा॒नः । मानु॑षीः । अ॒पः ॥ ९.६३.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:63» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:1» वर्ग:31» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:3» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! आप (अया) उस (धारया) प्रकाश से प्रकाशित करते हुए (यया) जिससे (सूर्यमरोचयः) सूर्य को आप प्रकाशित करते हैं, उससे मुझे भी प्रकाशित कीजिये और (मानुषीः) मनुष्यों के (अपः) कर्मों की (हिन्वानः) यथायोग्य प्रेरणा करते हुए (पवस्व) आप हमको पवित्र करें ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा से यथायोग्य न्याय की प्रार्थना है। यद्यपि परमात्मा स्वभावसिद्ध न्यायकारी है, तथापि परमात्मा ने इस मन्त्र में “हिन्वानः मानुषीरपः” इस वाक्य से यथायोग्य कर्मों का फलप्रदाता कथन करके यह सिद्ध किया कि तुम परमात्मा के न्याय तथा नियम के अनुकूल काम करो ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश ! भवान् (अया धारया) तेन प्रकाशेन प्रकाशयन् (यया) येन (सूर्यमरोचयः) सूर्यं प्रकाशयति मां प्रकाशयतु। अथ च (मानुषीः) मनुष्याणां (अपः) कर्माणि (हिन्वानः) यथायोग्यं प्रेरयन् (पवस्व) मां पवित्रयतु ॥७॥