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सु॒शि॒ल्पे बृ॑ह॒ती म॒ही पव॑मानो वृषण्यति । नक्तो॒षासा॒ न द॑र्श॒ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

suśilpe bṛhatī mahī pavamāno vṛṣaṇyati | naktoṣāsā na darśate ||

पद पाठ

सु॒शि॒ल्पे इति॑ सुऽशि॒ल्पे । बृ॒ह॒ती इति॑ । म॒ही इति॑ । पव॑मानः । वृ॒ष॒ण्य॒ति॒ । नक्तो॒षसा॑ । न । द॒र्श॒ते इति॑ ॥ ९.५.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:5» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नक्तोषासा) रात्री और उषःकाल (दर्शते) परमात्मा की उपासना करने योग्य है (सुशिल्पे) और सुन्दर २ कला कोशलादि विद्याओं के अनुसन्धान करने योग्य है (बृहती) बड़े और (मही) पूज्य अर्थात् सफल करने योग्य है। इन कालों में (पवमानः) उपास्यमान परमात्मा (वृषण्यति) सब कामनाओं को देता है और जो इस प्रकार के उपासक नहीं, उनकी कामनाओं को (न) नहीं पूर्ण करता ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उपदेश करते हैं कि उषःकाल अपने स्वाभाविक धर्म से ऐसा उत्तम है कि अन्य कोई काल नहीं, इससे मनुष्य की ईश्वरोपासना की ओर स्वाभाविक रुचि होती है, इसलिये इस ब्राह्ममुहूर्त का वर्णन वेदों में बहुधा आता है। इसी भाव को लेकर मनु आदि ग्रन्थो में ‘ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्ध्येत’ इत्यादि कहा है कि ब्राह्म मुहूर्त में उठे और परमात्मा का चिन्तन करे ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (नक्तोषासा) रात्रिरुषःकालश्च (दर्शते) ईशोपासनार्हौ स्तः (सुशिल्पे) सुष्ठु कलाकौशलादिविद्यासाधनार्हौ च स्तः (बृहती) महान्तौ (मही) पूज्यौ सफलनीयौ च स्तः अत्र च (पवमानः) उपास्यमानः परमात्मा (वृषण्यति) सर्वान् कामान् ददाति अभक्ताँश्च (न) न ददाति ॥६॥