वांछित मन्त्र चुनें

उ॒भे सो॑माव॒चाक॑शन्मृ॒गो न त॒क्तो अ॑र्षसि । सीद॑न्नृ॒तस्य॒ योनि॒मा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ubhe somāvacākaśan mṛgo na takto arṣasi | sīdann ṛtasya yonim ā ||

पद पाठ

उ॒भे इति॑ । सो॒म॒ । अ॒व॒ऽचाक॑शत् । मृ॒गः । न । त॒क्तः । अ॒र्ष॒सि॒ । सीद॑न् । ऋ॒तस्य॑ । योनि॑म् । आ ॥ ९.३२.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:32» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (उभे अवचाकशत्) आप द्युलोक और पृथिवीलोक के साक्षी हैं (मृगः न तक्तः) और सिंह के समान प्रकृतिरूप वन में विराजमान हो रहे हैं (ऋतस्य योनिम् आसीदन्) अखिलकार्य का कारण जो प्रकृति, उसमें स्थित हो कर (अर्षसि) सर्वत्र व्याप्त हो रहे हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा इस प्रकृति के कार्य चराचर ब्रह्माण्ड में ओत-प्रोत हो रहा है अर्थात् प्रकृति एक प्रकार से गहन वन है और परमात्मा सिंह के समान इस वन का स्वामी है। इस मन्त्र में परमात्मा की व्यापकता और शोर्य-क्रौर्यादि गुणों के भाव से परमात्मा की रौद्ररूपता वर्णन की है। 
बार पढ़ा गया

आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (उभे अवचाकशत्) द्युलोकपृथिवीलोकौ पश्यति (मृगः न तक्तः) सिंह इव प्रकृतिरूपे वने विराजते (ऋतस्य योनिम् आसीदन्) कार्यमात्रकारणीभूतायां प्रकृतौ स्थितः (अर्षसि) सर्वं व्याप्नोति ॥४॥