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ए॒ष सूर्य॑मरोचय॒त्पव॑मानो॒ विच॑र्षणिः । विश्वा॒ धामा॑नि विश्व॒वित् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

eṣa sūryam arocayat pavamāno vicarṣaṇiḥ | viśvā dhāmāni viśvavit ||

पद पाठ

ए॒षः । सूर्य॑म् । अ॒रो॒च॒य॒त् । पव॑मानः । विऽच॑र्षणिः । विश्वा॑ । धामा॑नि । वि॒श्व॒ऽवित् ॥ ९.२८.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:28» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) यह परमात्मा (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्य को भी प्रकाशित करता है (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टा है (विश्वा धामानि) सब स्थानों में विराजमान है (विश्ववित्) सर्वज्ञ है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को सूर्य का भी प्रकाशक कथन किया है। तात्पर्य यह है कि यह जड़ सूर्य उसकी सत्ता में प्रकाशित होता है। जो लोग गायत्री आदि मन्त्रों में इस जड़ सूर्य को उपास्य बताया करते हैं, उनको “सूर्यमरोचयत्” इस वाक्य से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि यदि वेद का तात्पर्य जड़ सूर्य को उपास्य देव कथन करने का होता, तो इस जड़ सूर्य को उससे प्रकाश पाकर प्रकाशित होना न कथन किया जाता और न “सूर्याचन्द्रमसौ धाता” इत्यादि वाक्यों से इस जड़ सूर्यादि का निर्माता कथन किया जाता ॥५॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (एषः) अयं परमात्मा (सूर्यम् अरोचयत्) सूर्यमपि प्रकाशयति (पवमानः) सर्वं पवित्रयति (विचर्षणिः) सर्वद्रष्टास्ति (विश्वा धामानि) सर्वस्थानेषु विराजते (विश्ववित्) सर्वज्ञश्चास्ति ॥५॥