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विश्वा॑ रू॒पाण्या॑वि॒शन्पु॑ना॒नो या॑ति हर्य॒तः । यत्रा॒मृता॑स॒ आस॑ते ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viśvā rūpāṇy āviśan punāno yāti haryataḥ | yatrāmṛtāsa āsate ||

पद पाठ

विश्वा॑ । रू॒पाणि॑ । आ॒ऽवि॒शन् । पु॒ना॒नः । या॒ति॒ । ह॒र्य॒तः । यत्र॑ । अ॒मृता॑सः । आस॑ते ॥ ९.२५.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:25» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

अब इस बात का कथन करते हैं कि मुक्त पुरुष ब्रह्म के स्वरूप में निवास करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनानः) सबको पवित्र करता हुआ (विश्वा रूपाणि) सब रूपों में (आविशन्) प्रवेश करता हुआ (हर्यतः) अपनी कमनीयता से (याति) सर्वत्र प्राप्त है (यत्र) जिस ब्रह्मरूप में (अमृतासः) मुक्ति पद को भोगते हुए (आसते) मुक्त पुरुष निवास करते हैं, वह ब्रह्म सबको पवित्र करनेवाला है ॥४॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा प्रत्येक वस्तु के भीतर व्यापक है अर्थात् वह प्रत्येक रूप में प्रविष्ट है। इसी तात्पर्य से उपनिषद् में कथन किया है “रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव” प्रत्येक रूप में परमात्मा तद्रूप हो रहा है अर्थात् उसी की सत्ता से उस रूप की मनोहरता है। इस प्रकार का जो सर्वाधिकरण परमात्मा है, उसी में मुक्त पुरुष जाकर निवास करते हैं ॥४॥
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आर्यमुनि

मुक्तपुरुषाः तस्य ब्रह्मणः स्वरूपे निवसन्तीत्युच्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - (पुनानः) सर्वान् पवित्रयन् परमात्मा (विश्वा रूपाणि) सर्वाणि रूपाणि (आविशन्) प्राविशन् (हर्यतः) स्वसौन्दर्येण (याति) सर्वं प्राप्तो भवति (यत्र) यस्मिन् ब्रह्मणि (अमृतासः) मुक्तिपदं भुञ्जाना मुक्ताः पुरुषाः (आसते) निवसन्ति तद् ब्रह्म सर्वं पुनाति ॥४॥