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आ व॑च्यस्व॒ महि॒ प्सरो॒ वृषे॑न्दो द्यु॒म्नव॑त्तमः । आ योनिं॑ धर्ण॒सिः स॑दः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vacyasva mahi psaro vṛṣendo dyumnavattamaḥ | ā yoniṁ dharṇasiḥ sadaḥ ||

पद पाठ

आ । व॒च्य॒स्व॒ । महि॑ । प्सरः॑ । वृषा॑ । इ॒न्दो॒ इति॑ । द्यु॒म्नव॑त्ऽतमः । आ । योनि॑म् । ध॒र्ण॒सिः । स॒दः॒ ॥ ९.२.२

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:2» मन्त्र:2 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:18» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा इन्दो) हे सब कामनाओं के पूर्ण करनेवाले (द्युम्नवत्तमः) यशस्वी  (महि) महान् परमात्मन् ! आप हमें (आ) सर्वव्यापी (प्सरः) ज्ञान का (वच्यस्व) उपदेश करें, क्योकि आप (सदः) सद्विज्ञान को (योनि) संसार के कारणभूत प्रकृति को (आ) सब ओर से (धर्णसिः) धारण किये हुए हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा कोटानुकोटि ब्रह्माण्डों का आधार है, उसी के शासन में द्युलोक भूलोक स्वर्गलोक इत्यादि लोक-लोकान्तर परिभ्रमण करते हैं, वही इस चराचर ब्रह्माण्ड का आधार है। मनुष्य को उसी परमात्मा की उपासना करनी चाहिये ॥२॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा, इन्दो) हे सर्वमनोरथपूरक ! (द्युम्नवत्तमः) यशस्विन् (महि) महन् परमात्मन् ! त्वं मह्यम् (आ) व्यापकम् (प्सरः) ज्ञानम् (वच्यस्व) उपदिश यतो भवान् (सदः) सद्विज्ञानं (योनिम्) संसारस्य कारणभूतां प्रकृतिं च (आ) सर्वत्र (धर्णसिः) धृतवानस्ति ॥२॥