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अति॑ श्रि॒ती ति॑र॒श्चता॑ ग॒व्या जि॑गा॒त्यण्व्या॑ । व॒ग्नुमि॑यर्ति॒ यं वि॒दे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ati śritī tiraścatā gavyā jigāty aṇvyā | vagnum iyarti yaṁ vide ||

पद पाठ

अति॑ । श्रि॒ती । ति॒र॒श्चता॑ । ग॒व्या । जि॒गा॒ति॒ । अण्व्या॑ । व॒ग्नुम् । इ॒य॒र्ति॒ । यम् । वि॒दे ॥ ९.१४.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:14» मन्त्र:6 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अति श्रिती) ‘श्रितिमतिकान्तः अतिश्रिती” जो किसी अन्य वस्तु के आश्रित न हो, उसका नाम अतिश्रिती अर्थात् सबका आश्रय परमात्मा (अण्व्या) सूक्ष्म (तिरश्चता) तीक्ष्ण (गव्या) इन्द्रिय की वृत्तियों से (जिगाति) प्रकाश को प्राप्त होता है (यम्) जिसको (वग्नुम्) शब्दप्रमाण (विदे) जिज्ञासु के लिये (इयर्ति) प्रकट करता है ॥६॥
भावार्थभाषाः - जब धारणा-ध्यानादि योगाङ्गों से चित्त की वृत्तियें निर्मल होती हैं, तो उक्त परमात्मा को विषय करती हैं। जो पुरुष शब्दप्रमाण पर विश्वास करते हैं, वे साधनसम्पन्न वृत्तियों के द्वारा उसका अनुभव करते हैं, अन्य नहीं ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (अति श्रिती) अनन्याधारः परमात्मा (अण्व्या) अणुभिः (तिरश्चता) तीक्ष्णाभिः (गव्या) इन्द्रियवृत्तिभिः (जिगाति) प्रकाश्यते (यम्) यम् (वग्नुम्) शब्दप्रमाणं (विदे) जिज्ञासवे (इयर्ति) प्रकटयति अन्यस्मै न ॥६॥