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नि॒रि॒णा॒नो वि धा॑वति॒ जह॒च्छर्या॑णि॒ तान्वा॑ । अत्रा॒ सं जि॑घ्नते यु॒जा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

niriṇāno vi dhāvati jahac charyāṇi tānvā | atrā saṁ jighnate yujā ||

पद पाठ

नि॒ऽरि॒णा॒नः । वि । धा॒व॒ति॒ । जह॑त् । शर्या॑णि । तान्वा॑ । अत्र॑ । सम् । जि॒घ्र॒ते॒ । यु॒जा ॥ ९.१४.४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:14» मन्त्र:4 | अष्टक:6» अध्याय:8» वर्ग:3» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:4


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - उक्त परमात्मा (निरिणानः) ज्ञान का विषय होता हुआ (तान्वा) अपने प्रकाश से (शर्याणि) अपनी प्रकाशरश्मियों को छोड़ता हुआ (विधावति) जिज्ञासु के बुद्धिगत होता है (अत्र युजा) उस परमात्मा में युक्त होकर (सम् जिघ्नते) उपासक लोग अज्ञानों का नाश करते हैं ॥४॥
भावार्थभाषाः - ध्यान का विषय हुआ वह परमात्मा जिज्ञासुओं के अन्तःकरणों को निर्मल करता है और जिज्ञासुजन उस की उपासना करते हुए अज्ञान का नाश करके परम गति को प्राप्त होते हैं ॥४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - उक्तः परमात्मा (निरिणानः) ज्ञानविषयो भवन् (तान्वा) स्वप्रकाशेन (शर्याणि) स्वप्रकाशरश्मिवर्गं जहत् (विधावति) जिजासुबुद्धौ तिष्ठति (अत्र युजा) अत्र परमात्मनि योगेन (सम् जिघ्नते) उपासकाः स्वाज्ञानं घ्नन्ति ॥४॥