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नित्य॑स्तोत्रो॒ वन॒स्पति॑र्धी॒नाम॒न्तः स॑ब॒र्दुघ॑: । हि॒न्वा॒नो मानु॑षा यु॒गा ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nityastotro vanaspatir dhīnām antaḥ sabardughaḥ | hinvāno mānuṣā yugā ||

पद पाठ

नित्य॑ऽस्तोत्रः । वन॒स्पतिः॑ । धी॒नाम् । अ॒न्तरिति॑ । स॒बः॒ऽदुघः॑ । हि॒न्वा॒नः । मानु॑षा । यु॒गा ॥ ९.१२.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:12» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:39» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - वह परमात्मा (नित्यस्तोत्रः) नित्यस्तुति करने योग्य है (वनस्पतिः) सब ब्रह्माण्डों का स्वामी है (धीनाम् अन्तः) बुद्धियों का अन्त है (सबः दुघः) अमृत से परिपूर्ण करनेवाला है (मानुषा युगा) और स्त्री-पुरुष के जोड़े को उत्पन्न करनेवाला है (हिन्वानः) सबका तृप्तिकारक है ॥७॥
भावार्थभाषाः - बुद्धियों का अन्त उसको इस अभिप्राय से कथन किया गया है कि मनुष्य की बुद्धि उसके पारावार को नहीं पा सकती, इसलिये उसने मनुष्यों पर अत्यन्त करुणा करके अपने वेदरूपी ज्ञान का प्रकाश किया है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा (नित्यस्तोत्रः) नित्यस्तवनीयः (वनस्पतिः) सर्वब्रह्माण्डाधिपतिः (धीनाम् अन्तः) बुद्धीनामवसानः (सबः दुघः) अमृतेन तर्पकश्च (मानुषा युगा) स्त्रीपुरुषयोर्युगलस्योत्पादकश्च (हिन्वानः) सर्वस्य तृप्तिकारकश्चास्ति ॥७॥