अ॒भि विप्रा॑ अनूषत॒ गावो॑ व॒त्सं न मा॒तर॑: । इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
abhi viprā anūṣata gāvo vatsaṁ na mātaraḥ | indraṁ somasya pītaye ||
पद पाठ
अ॒भि । विप्राः॑ । अ॒नू॒ष॒त॒ । गावः॑ । व॒त्सम् । न । मा॒तरः॑ । इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ ॥ ९.१२.२
ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:12» मन्त्र:2
| अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:38» मन्त्र:2
| मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:2
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - उस परमात्मा को पाने के लिये (गावः) इन्द्रियें (मातरः वत्सम् न) जैसे माता को बछड़ा आश्रयण करता है, इसी प्रकार आश्रयण करती है, उसी प्रकार (सोमस्य पीतये) विज्ञानी लोग (इन्द्रम्) सौम्य स्वभाव को बनाने के लिये (अभि अनूषत) परमात्मा को विभूषित करते हैं ॥२॥
भावार्थभाषाः - जब तक पुरुष सौम्य स्वभाव परमात्मा का आश्रयण नहीं करता, तब तक उसके स्वभाव में सौम्य भाव नहीं आ सकते और उसका आश्रयण करना साधारण रीति से हो तो कोई अपूर्वता उत्पन्न नहीं कर सकता। जब पुरुष परमात्मा में इस प्रकार अनुरक्त होता है, जैसा कि वत्स अपनी माता में अनुरक्त होते हैं अथवा इन्द्रिय अपने शब्दादि विषयों में अनुरक्त होती है, इस प्रकार की अनुरक्ति के विना परमात्मा के भावों को पुरुष कदापि ग्रहण नहीं कर सकता ॥२॥
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आर्यमुनि
पदार्थान्वयभाषाः - तमीश्वरं लब्धुम् (गावः) इन्द्रियाणि (मातरः वत्सम् न) यथा मातॄः वत्स आश्रयते तद्वद् आश्रयन्ते तथैव च (विप्राः) विज्ञानिनः (सोमस्य पीतये) सौम्यस्वभावं निर्मातुं (इन्द्रम्) परमात्मानं (अभ्यनूषत) विभूषयन्ति ॥२॥