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त्वे सो॑म प्रथ॒मा वृ॒क्तब॑र्हिषो म॒हे वाजा॑य॒ श्रव॑से॒ धियं॑ दधुः । स त्वं नो॑ वीर वी॒र्या॑य चोदय ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tve soma prathamā vṛktabarhiṣo mahe vājāya śravase dhiyaṁ dadhuḥ | sa tvaṁ no vīra vīryāya codaya ||

पद पाठ

त्वे इति॑ । सो॒म॒ । प्र॒थ॒माः । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । म॒हे । वाजा॑य । श्रव॑से । धिय॑म् । द॒धुः॒ । सः । त्वम् । नः॒ । वी॒र॒ । वी॒र्या॑य । चो॒द॒य॒ ॥ ९.११०.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:110» मन्त्र:7 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! (प्रथमाः) प्राचीन लोग (वृक्तबर्हिषः) जिन्होंने अपनी कामनाओं का उच्छेदन कर दिया है, वे (त्वे) आपमें (महे, वाजाय) बड़े यज्ञ के लिये अथवा (श्रवसे) ऐश्वर्य्य के लिये (धियं, दधुः) कर्मरूप बुद्धि को धारण करते हैं। (वीर) हे सर्वोपरि बलस्वरूप परमात्मन् ! (सः, त्वं) वह आप (नः) हमको (वीर्याय) वीरपुरुषों में होनेवाले गुणों के लिये (चोदय) प्रेरणा करें ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा से यह प्रार्थना की गई है कि हे भगवन् ! हम बड़े-बड़े यज्ञ करते हुए ऐश्वर्यसम्पादन करें अथवा वीर पुरुषों के गुणों को धारण करते हुए बलवान् बनें, क्योंकि आप ही की कृपा से मनुष्य वीरतादि गुणों को धारण कर सकता है, अन्यथा नहीं ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) सर्वोत्पादक ! (प्रथमाः) प्राचीनाः (वृक्तबर्हिषः) उच्छिन्नकामाः (त्वे) भवति  (महे, वाजाय) महते यज्ञाय  (श्रवसे)  ऐश्वर्य्याय च (धियं, दधुः) कर्मरूपबुद्धिं दधति (वीर)  हे  सर्वोपरि बलवन् ! (सः, त्वं) स भवान् (नः)  अस्मान्  (वीर्याय)  वीरपुरुषगतगुणाय (चोदय) प्रेरयतु ॥७॥