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अ॒मि॒त्र॒हा विच॑र्षणि॒: पव॑स्व सोम॒ शं गवे॑ । दे॒वेभ्यो॑ अनुकाम॒कृत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

amitrahā vicarṣaṇiḥ pavasva soma śaṁ gave | devebhyo anukāmakṛt ||

पद पाठ

अ॒मि॒त्र॒ऽहा । विऽच॑र्षणिः । पव॑स्व । सो॒म॒ । शम् । गवे॑ । दे॒वेभ्यः॑ । अ॒नु॒का॒म॒ऽकृत् ॥ ९.११.७

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:11» मन्त्र:7 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:37» मन्त्र:2 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (अमित्रहा) आप प्रेमरहित नास्तिक लोगों के हनन करनेवाले हैं और (देवेभ्यो अनुकामकृत्) और देवीसम्पत्ति के गुण रखनेवाले लोगों की कामनाओं के पूर्ण करनेवाले हैं, क्योंकि (विचर्षणिः) आप न्यायदृष्टि से देखनेवाले हैं आप (गवे) हमारी वृत्तियों का (शम् पवस्व) कल्याण करें और पवित्र करें ॥७॥
भावार्थभाषाः - संसार में असुर और देव दो प्रकार के मनुष्य पाये जाते हैं, असुर उनको कहते हैं, जो धर्म को त्याग करके केवल प्राणयात्रा में लग जाते हैं। अर्थ इसके इस प्रकार हैं “अस्यति धर्ममित्यसुरः’ यद्वा– ‘असुषु रमत इत्यसुरः” जो धर्म को छोड़ दे या प्राण में ही रमण करे, वह असुर है। और ‘दीव्यतीति देवः’ जो सदसद्विवेचिनी बुद्धि रखनेवाले ज्ञानी पुरुष हैं, उनको देव कहते हैं। जो असुर लोग हैं, उन्हीं को इस मन्त्र में अमित्र माना गया है अर्थात् दैवी सम्पत्तिवाले पुरुषों को परमात्मा बढ़ाता है और आसुरी सम्पत्तिवाले पुरुषों का संहार करता है ॥७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे परमात्मन् ! (अमित्रहा) भवान् दुष्टानां नाशकः (देवेभ्यो अनुकामकृत्) दैवसम्पत्तिवतां कामनाप्रदश्चास्ति यतः   (विचर्षणिः) न्यायदृष्ट्या पश्यति भवान् (गवे) मद्वृत्तीः (शम् पवस्व) कल्याणप्रदानपूर्वकं पुनातु ॥७॥