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बिभ॑र्ति॒ चार्विन्द्र॑स्य॒ नाम॒ येन॒ विश्वा॑नि वृ॒त्रा ज॒घान॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bibharti cārv indrasya nāma yena viśvāni vṛtrā jaghāna ||

पद पाठ

बिभ॑र्ति । चारु॑ । इन्द्र॑स्य । नाम॑ । येन॑ । विश्वा॑नि । वृ॒त्रा । ज॒घान॑ ॥ ९.१०९.१४

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:14 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:14


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) परमात्मा कर्मयोगी के (चारु, नाम) सुन्दर शरीर को (बिभर्ति) निर्माण करता है, (येन) जिससे वह (विश्वानि) सम्पूर्ण (वृत्रा) अज्ञान (जघान) नाश करता है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र का तात्पर्य यह है कि यद्यपि स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण ये तीनों प्रकार के शरीर सब जीवों को प्राप्त हैं, परन्तु कर्मयोगी के सूक्ष्मशरीर में परमात्मा एक प्रकार का दिव्यभाव उत्पन्न कर देता है, जिससे अज्ञान का नाश और ज्ञान की वृद्धि होती है, इस भाव से मन्त्र में कर्मयोगी के शरीर को बनाना लिखा है ॥१४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - स परमात्मा (इन्द्रस्य) कर्मयोगिनः (चारु) सुन्दरं (नाम) शरीरं (बिभर्ति) निर्माति (येन) येन शरीरेण (विश्वानि) सकलानि (वृत्रा) अज्ञानानि (जघान) कर्मयोगी नाशयति ॥१४॥