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परि॒ प्र ध॒न्वेन्द्रा॑य सोम स्वा॒दुर्मि॒त्राय॑ पू॒ष्णे भगा॑य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari pra dhanvendrāya soma svādur mitrāya pūṣṇe bhagāya ||

पद पाठ

परि॑ । प्र । ध॒न्व॒ । इन्द्रा॑य । सो॒म॒ । स्वा॒दुः । मि॒त्राय॑ । पू॒ष्णे । भगा॑य ॥ ९.१०९.१

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:109» मन्त्र:1 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:20» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:1


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आर्यमुनि

अब कर्मयोगी के गुणों का वर्णन करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्राय) मित्रतारूप गुणवाले (पूष्णे) सदुपदेश द्वारा पुष्टि करनेवाले (भगाय) ऐश्वर्य्यवाले (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (सोम) हे सोम ! आप (स्वादुः) उत्तम फल के लिये (परि, प्र, धन्व) भले प्रकार प्रेरणा करें ॥१॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा उद्योगी तथा कर्मयोगियों के लिये नानाविध स्वादु फलों को उत्पन्न करता है अर्थात् सब प्रकार के ऐश्वर्य्य और धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष इन चारों फलों का भोक्ता कर्मयोगी तथा उद्योगी ही हो सकता है, अन्य नहीं, इसलिये पुरुष को कर्मयोगी तथा उद्योगी बनना चाहिये ॥१॥
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आर्यमुनि

अथ कर्मयोगिनो गुणा वर्ण्यन्ते।

पदार्थान्वयभाषाः - (मित्राय) मित्रतारूपगुणवते  (पूष्णे)  सदुपदेशैः पोषकाय  (भगाय) ऐश्वर्य्यसम्पन्नाय (इन्द्राय) कर्मयोगिने (सोम) हे परमात्मन् ! भवान्(स्वादुः) स्वादुफलं (परि, प्र, धन्व) प्रेरयतु ॥१॥