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परि॑ सुवा॒नश्चक्ष॑से देव॒माद॑न॒: क्रतु॒रिन्दु॑र्विचक्ष॒णः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pari suvānaś cakṣase devamādanaḥ kratur indur vicakṣaṇaḥ ||

पद पाठ

परि॑ । सु॒वा॒नः । चक्ष॑से । दे॒व॒ऽमाद॑नः । क्रतुः॑ । इन्दुः॑ । वि॒ऽच॒क्ष॒णः ॥ ९.१०७.३

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:107» मन्त्र:3 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:12» मन्त्र:3 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:3


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चक्षसे) सब लोगों की ज्ञानवृद्धि के लिये (परिसुवानः) ज्ञानरूपी दीप्ति से प्रकट हुआ परमात्मा उपासकों के ध्यानगोचर होता है, वह परमात्मा (देवमादनः) विद्वानों को आनन्द देनेवाला है, (क्रतुः) यज्ञरूप है, (इन्दुः) स्वयंप्रकाश है, (विचक्षणः) विलक्षण प्रतिभावाला अर्थात् सर्वज्ञ है ॥३॥
भावार्थभाषाः - जिस समय उस निराकार का ध्यान किया जाता है, उस समय उसके सद्गुण उपासक के हृदय में आविर्भाव को प्राप्त होते हैं अर्थात् उसके सत्, चित्, आनन्द इत्यादि रूप प्रतीत होने लगते हैं, यही परमात्मदेव का साक्षात्कार है ॥३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (चक्षसे) सर्वेषां ज्ञानवृद्धये (परिसुवानः) ज्ञानदीप्त्या उपासको ध्यानगोचरो भवति (देवमादनः) स विदुषामानन्दयिता (क्रतुः) यज्ञरूपः (इन्दुः) स्वयंप्रकाशः (विचक्षणः) अपूर्वप्रतिभोऽर्थात् सर्वज्ञः ॥३॥