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अ॒स्मभ्यं॑ गातु॒वित्त॑मो दे॒वेभ्यो॒ मधु॑मत्तमः । स॒हस्रं॑ याहि प॒थिभि॒: कनि॑क्रदत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmabhyaṁ gātuvittamo devebhyo madhumattamaḥ | sahasraṁ yāhi pathibhiḥ kanikradat ||

पद पाठ

अ॒स्मभ्य॑म् । गा॒तु॒वित्ऽत॑मः । दे॒वेभ्यः॑ । मधु॑मत्ऽतमः । स॒हस्र॑म् । या॒हि॒ । प॒थिऽभिः॑ । कनि॑क्रदत् ॥ ९.१०६.६

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:106» मन्त्र:6 | अष्टक:7» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:9» अनुवाक:7» मन्त्र:6


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवेभ्यः) दैवी सम्पत्तिवाले पुरुषों को लिये (मधुमत्तमः) आनन्दमय परमात्मन् (अस्मभ्यं) हमारे लिये (गातुवित्तमः) शुभ मार्गों की प्राप्ति करनेवाले हो और (सहस्त्रं, पथिभिः) अनन्त शक्तिप्रद मार्गों से (कनिक्रदत्) गर्जते हुए (याहि) आप ज्ञानरूपी गति को प्रदान करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा अनन्त मार्गों द्वारा अपने ज्ञान का प्रकाश करता है अर्थात् इस विविध रचना से उसके भक्त अनन्त प्रकार से उसके ज्ञान को उपलब्ध करते हैं। अनन्त ब्रह्माण्डों की रचना द्वारा और इस विशाल नभोमण्डल में अपनी दिव्य ज्योतियों से परमात्मा सदैव गर्ज रहा है। परमात्मा का यही गर्जन है और निराकार परमात्मा किसी प्रकार भी गर्जन नहीं करता ॥६॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवेभ्यः) दिव्यसम्पत्तिमद्भ्यः (मधुमत्तमः) आनन्दमयो भवान् (अस्मभ्यं) अस्मदर्थं (गातुवित्तमः) शुभमार्गप्रापको भवतु (सहस्रं, पथिभिः) अनन्तशक्तिप्रदमार्गैः (कनिक्रदत्) गर्जन् (याहि) ज्ञानरूपगत्याः प्रदानं कुरुताम् ॥६॥